- नाम-भजन के कई प्रकार हैं- जप , स्मरण और कीर्तन। इनमें सबसे पहले जप की बात कही जाती है। परमात्मा के जिस नाम में रुचि हो , जो अपने मन को रुचिकर हो उसी नाम की परमात्मा की भावना से बारम्बार आवृत्ति करने का नाम ' जप ' है। जप की शास्त्रों में बड़ी महिमा है। जप को यज्ञ माना है और श्री गीताजी में भगवान के इस कथन से कि ' यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि ' ( यज्ञों में जप-यज्ञ मैं हूँ) जप का महत्त्व बहुत ही बढ़ गया है। जप के तीन प्रकार हैं-साधारण , उपांशु और मानस। इनमें पूर्व-पूर्व से उत्तर-उत्तर दस गुणा अधिक फलदायक है। भगवान मनु कहते हैं – विधियज्ञाज्जपयज्ञो विशिष्टो दशभिर्गुणैः। उपांशुः स्याच्छतगुणः साहस्रो मानसः स्मृतः॥ दर्श-पौर्णमासादि विधि यज्ञों से (यहाँ मनु महाराज ने भी विधि यज्ञों से जप-यज्ञ को ऊँचा मान लिया है) साधारण जप दस श्रेष्ठ है , उपांशु-जप सौ गुणा श्रेष्ठ है और मानस-जप हजार गुणा श्रेष्ठ है। जो फल साधारण जप के हजार मन्त्रों से होता है वही फल उपांशु जप के सौ मन्त्रों से और मानस-जप के एक मंत्र से हो जाता है। उच्च स्वर से होने वाले जप को साधारण जप क
भगवन्नाम के मूल्य पर एक दृष्टान्त एक श्रद्धालु भक्त प्रतिदिन गांव के बाहर एक महात्मा के पास जाया करता था। जब महात्मा की सेवा करते-करते उसे बहुत दिन बीत गये तब महात्मा ने उसे अधिकारी समझकर कहा कि ' वत्स! तेरी मति भगवान में है , तू श्रद्धालु है , गुरु सेवापरायण है , कुतार्किक आलसी नहीं है , शास्त्र वचनों में विश्वास है , किसी का बुरा नहीं चाहता , किसी से घृणा और द्वेष नहीं करता , सरल-चित्त है , काम , क्रोध , लोभ से डरता है , संतों का उपासक है और जिज्ञासु है ; इसलिये तुझे एक ऐसा गोपनीय मन्त्र देता हूँ जिसका पता बहुत ही थोड़े लोगों को है। यह मन्त्र परम गुप्त और अमूल्य है , किसी से कहना नहीं! ' यों कहकर महात्मा ने उसके कान धीरे से कह दिया ' राम ' । श्रद्धालु भक्त मन्त्रराज ' राम ' का जप करने लगा। वह एक दिन गंगा नहाकर लौट रहा था तो उसका ध्यान उन लोगोंकी तरफ गया तो हजारों की संख्या में उसी की तरह गंगा नहाकर जोर-जोर से ' राम-राम ' पुकारते चले आ रहे थे। सुनता तो रोज ही था परंतु कभी इस ओर उसका ध्यान नहीं गया था। आज ध्यान जाते ही उसके मन में यह विच