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भगवत प्राप्ति के लिए तीव्र विरह कि आवश्यकता

भगवत्प्राप्तिकी उत्कट इच्छा - इसी इच्छा कि जैसे प्यास से मरते हुए मनुष्य को जल कि होती है | जैसे प्यासे को जल का अनन्य  चिंतन होता है और जल मिलने में जितनी देरी होती है , उतनी ही उसकी व्याकुलता बढती है, वैसे ही भगवान् का अनन्य चिंतन होगा और भगवन के लिए परम व्याकुलता होगी | इससे सहज परमात्मा कि प्राप्ति हो जाएगी| भगवन किसी कर्म के फलस्वरूप नहीं प्राप्त होते , वे तो प्रबल और उत्कट इच्छा होने पर ही मिलते हैं |  ऎसी इच्छा होने पर उसकी प्रत्येक क्रिया भजन बन जाती है |भगवान् के प्रति पूर्ण आत्मसमर्पण  कर देने पर सहज ही प्रत्येक कार्य भगवान् के लिए ही होता है  क्योंकि भगवन उसके परम आश्रय,परम गति , परम प्रियतम हैं | उसकी साड़ी आसक्ति , ममता , प्रीति सब जगहं से सिमट कर  एकमात्र भगवान् के प्रति ही हो जाती है | वह उन्ही का स्मरण करता रहता है | भगवान् जब उसकी व्याकुल इच्छा को देखते हैं , तब सहज ही  आकर्षित होकर उसके सामने  प्रकट हो जाते हैं | और उसे अपने अंक में ले कर अपने हृदय से लगाकर सदा के लिए निहाल कर देते हैं | 
  महत्त्वपूर्ण  प्रश्नोत्तर page - 53-54 

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