१. अपने मनके विरुद्ध सब्द सुनते ही किसीकी नियतपर संदेह करना उचित नहीं !
२. अपने पापोंको देखते रहना और उन्हें प्रकाश कर देना भी पापोंसे छुटनेका एक प्रधान उपाय है!
३. जो लोग भगवन्नामका सहारा लेकर पाप करते हैं! जो नित्य नए पाप करके प्रतिदिन उन्हें नामसे धो डालना चाहते हैं, उन्हें तो नीच समझो! उनके पाप यमराज भी नहीं धो सकते!
४. पापोंसे छुटने या भोगोंको पानेके लिए भी भगवन्नामका प्रयोग करना बुद्धिमानी नहीं है! पापका नाश तो प्रायश्चित या फलभोगसे ही हो सकता है ! तुच्छ नाशवान् भोगोंकि तो परवा ही क्यों करनी चाहिए ? उनके मिलने-न-मिलनेमें लाभ-हानि ही कौन-सी है ?
५. भगवन्नाम तो प्रियेसे भी प्रियतम वास्तु है! उसका प्रयोग तो केवल उसीके लिये करना चाहिए!