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भगवान् के प्रेमको प्राप्त करना ही मनुष्य-जीवनका मुख्य उदेश्य है




माघ कृष्ण प्रतिपदा, वि.सं.-२०६८, मंगलवार


१.) सत्संगसे इन्द्रियसंयम और मनकी शुद्धि होती है! अतः कुसंगका त्याग कर सत्संगका सेवन      
     करो! 


२.) वकील और कचहरियोंसे ही झगड़ोंकी जड़ नहीं कटती, झगड़ोंकी जड़ काटनेके लिये तो सबसे            
     अधिक जरूरी बात है ईमानदारी ! यदि मनुष्य दूसरेका हक़ मारनेकी इच्छा छोड़ दे तो झगड़ा  
     हो ही नहीं!


३.) भगवान् के प्रेमको प्राप्त करना ही मनुष्य-जीवनका मुख्य उदेश्य है, इस बातको स्मरण           
      रखना चाहिए! भगवत्प्रेमकी  प्राप्ति भगवान् की कृपासे ही होती है, किसी साधनसे नहीं !    


४.) साधनाका अहंकार कभी न रखो, भगवान् के आज्ञानुसार भगवदर्थ भजन-ध्यान करनेमें 
      प्राणपणसे लगे  रहो; परन्तु अपने हृदयमें साधकपनका अभिमान पैदा न होने दो! 


५.) भगवान् पर दृढ़ विश्वास रखो, तुम्हारे मनमें जितना -जितना भगवान् का विश्वास अधिक           
       होगा, तुम उतना ही भगवान् की और आगे बढ़ सकोगे !   

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