चैत्र कृष्ण सप्तमी, वि.सं.-२०६८, बुधवार
प्रेमी भक्त उद्धव:.........गत ब्लॉग से आगे...
'वे सीघ्र ही यहाँ आयेंगे भी! यदि आप उन्हें शरीरसे देखना चाहते हैं तो यह भी होगा, आप उनसे प्रेम करें और वे आपके पास न आवें, ऐसा नहीं हो सकता! कंस आदि दुष्टोंको मारनेके बाद यदुवंशियोंकी रक्षा- दीक्षाका सारा भार उन्हींपर आ पड़ा है! उनकी व्यवस्था करके वे यहाँ आ सकते हैं! गोपोंके वहाँसे चलनेके समय जो कुछ उन्होंने कहा था उसे श्रीकृष्ण अवश्य पूरा करेंगे! आपलोग बड़े ही भाग्यवान हैं! आप अपने निकट ही श्रीकृष्णका दर्शन प्राप्त करेंगे! वे आपसे दूर थोड़े ही हैं! वे आपके अंतरात्मा हैं, वे काष्टमें अग्निकी भाँती सर्वत्र व्यापक हैं! उनके लिये खिन्न होनेकी आवश्यकता नहीं! उनका न तो कोई प्रिय हैं और न तो अप्रिय! उनकी दृष्टिमें न कोई ऊँचा है, न नीचा! वे सर्वत्र समान हैं, अभिमान उनका स्पर्श नहीं कर पाता! न तो उनकी कोई माता है, न पिता है, न पत्नी है और न पुत्र! न कोई अपना है, न पराया! न शरीर है और न तो जन्म! न उनका कोई कर्म है और न तो उन्हें कर्मोंका फल भोगना है! वे अपने प्रेमी भक्तोंकी रक्षाके लिये लीलावतार ग्रहण करते हैं!
'सत्त्व,रज और तम ये तीन गुण हैं! वे निर्गुण होनेपर भी क्रीडाके लिये इन गुणोंको स्वीकार करते हैं और संसारकी सृष्टि, रक्षा तथा प्रलय करते हैं! जैसे घुमती हुई वस्तुपर चढ़कर देखें तो साड़ी पृथ्वी घुमती हुई-सी दीख पड़ती है, वैसे ही चित्त करता-भोक्ता है और उसका आरोप आत्मापर किया जाता है! श्रीकृष्ण केवल तुम दोनोंके ही पुत्र नहीं है, वे भगवान् हैं, सबके पुत्र हैं, सबके पिता-माता हैं, सबके ईश्वर है और सबके आत्मा हैं, जो कुछ कभी हुआ है, जो कुछ है या हो रहा है, जो कुछ होगा या हो सकता है, जो कुछ देखा या सुना गया है, जो कुछ जड़ या चेतन है, जो कुछ बड़ा या छोटा है, सब कुछ श्रीकृष्ण हैं, श्रीकृष्णके अतिरिक्त और कोई वस्तु नहीं है! वे सब हैं, केवल वही हैं, एकमात्र वही परमार्थ वस्तु हैं!'
इस प्रकार उन लोगोंमें बात होते-होते सारी रात बीत गयी! गोपियाँ अपने-अपने घर उठकर घरके देवताओंको नमस्कार करके दही मथने लगीं! वे एक स्वरसे 'गोविन्द, दामोधर, माधव' इत्यादि श्रीकृष्णके नामोंका समुधर गायन कर रही थीं! उनके इस प्रेम-गायनको सुनकर उद्धवने अपनी बात समाप्त की और नित्यकृत्य करनेके लिये वे यमुना-तटपर गये!
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