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नामकरण- संस्कार और बाललीला





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तुम्हारे पुत्र के जितने गुण हैं और जितने कर्म, उन सबके अनुसार अलग-अलग नाम पड़ जाते हैं ! यह तुमलोगों का परम कल्याण करेगा !  समस्त गोप और गौओं  को यह बहुत ही आनंदित करेगा ! इसकी सहायता से तुम लोग बड़ी-बड़ी विपत्तियों को बड़ी सुगमता से पार कर लोगे ! नंदजी चाहे जिस दृष्टि से देखें - गुणमें, संपत्ति  और सौंदर्य में, कीर्ति और प्रभाव में  तुम्हारा यह बालक साक्षात भगवान् नारायण के सामान है ! तुम बड़ी सावधानी और तत्परता से इसकी रक्षा करो ! नंदबाबा को बड़ा ही आनंद हुआ ! उन्होंने ऐसा समझा कि मेरी सब आशा-लालसाएं पूरी हो गयीं, मैं अब कृतकृत्य हूँ !
कुछ ही दिनों में राम और श्याम घुटनों और हाथों के बल बकैयाँ चल-चलकर गोकुल में खलने लगे ! दोनों भाई अपने नन्हें-नन्हें पांवों को गोकुल की कीचड़ में घसीटते हुए चलते ! उस समय उनके पाँव और कमर के घुँघरू रुनझुन बजने लगते ! वे दोनों स्वयं वह ध्वनि सुनकर खिल उठते ! माताएं यह सब देख-देखकर स्नेह्से भर जातीं ! उनके स्तनों से दूध की धारा बहने लगती थी ! माताएं उन्हें आते ही दोनों हाथों से गोद में लेकर ह्रदय से लगा लेतीं और स्तनपान कराने लगतीं, जब वे दूध पीने लगते और बीच-बीच में मुसकरा-मुसकरा कर अपनी माताओं की ओर देखने लगते, तब वे उनकी मंद-मंद मुसकान, छोटी-छोटी दंतुलियाँ और भोला-भाला मुंह देखर आनंद के समुद्र में डूबने-उतरने लगतीं !
जब राम और श्याम दोनों कुछ और बड़े हुए , तब ब्रज में घरके बाहर ऐसी-ऐसी बाललीलाएँ करने लगे, जिन्हें गोपियाँ देखती ही रह जातीं ! गोपियाँ अपने घर का काम-धंधा छोड़कर यही सब देखती रहतीं और हँसते-हँसते लोटपोट होकर परम आनंद में मग्न हो जातीं ! कन्हैया और बलदाऊ दोनों ही बड़े चंचल और बड़े खिलाडी थे ! माताएं उन्हें बहुत बरजतीं, परन्तु उनकी एक न चलती ! ऐसी स्थिति में वे घर का काम-धंधा भी नहीं सम्हाल पातीं ! उनका चित्त बच्चों को भय की वस्तुओं से बचाने की चिंता से अत्यंत चंचल रहता था !

श्रीप्रेम-सुधा-सागर  (३०)                           

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