अब आगे........
कुछ ही दिनों में यशोदा और रोहिणी के लाड़ले लाल घुटनों का सहारा लिए बिना अनायास ही खड़े होकर गोकुल में चलने-फिरने लगे ! अब कन्हैया और बलराम अपनी ही उम्र के ग्वालबालों को अपने साथ लेकर खेलने के लिए ब्रज में निकल पड़ते और ब्रज की भाग्यवती गोपियों को निहाल करते हुए तरह-तरह के खेल खेलते ! एक दिन सभी गोपियाँ नंदबाबा के घर आयीं और यशोदा माता को सुना-सुनाकर कन्हैया के करतूत कहने लगीं ! अरी यशोदा! यह तेरा कान्हा बड़ा नटखट हो गया है ! यह चोरी के बड़े-बड़े उपाय करके हमारे मीठे-मीठे दही-दूध चुरा-चुराकर खा जाता है ! केवल अपने ही खाता तो भी एक बात थी, यह तो सारा दही-दूध वानरों को बाँट देता है तब यह हमारी मटकियों को ही फोड़ डालता है ! जब हम दही-दूध को छीकों पर रख देतीं हैं और इसके छोटे-छोटे हाथ वहां तक नहीं पहुँच पाते, तब वह बड़े-बड़े उपाय रचता है ! कहीं दो-चार पीढ़ों को एक के ऊपर एक रख देता है और चढ़ जाता है ! इसे इस बात की पक्की पहचान रहती है कि किस छीके पर किस बर्तन में क्या रखा है ! इसके शरीर में भी ऐसी ज्योति है कि जिससे इसे सब कुछ दीख जाता है ! ऐसा करके भी ढिठाई की बातें करता है - उलटे हमें ही चोर बनाता और अपने घर का मालिक बन जाता है !
एक दिन बलराम आदि ग्वालबाल श्रीकृष्ण के साथ खेल रहे थे ! उन लोगों ने माँ यशोदा के पास आकर कहा - 'माँ ! कन्हैया ने मिट्टी खायी है' ! यशोदा मैया ने डांटकर कहा - क्यों रे नटखट ! तू बहुत ढीठ हो गया है ! तूने अकेले में छिपकर मिट्टी क्यों खायी? तेरे भैया बलदाऊ भी तो उन्ही की ओर से गवाही दे रहे हैं !
भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा - 'माँ ! मैंने मिट्टी नहीं खायी ! यह सब झूठ बक रहे हैं ! यदि तुम इन्हींकी बात सच मानती हो तो मेरा मुँह तुम्हारे सामने ही है, तुम अपनी आँखों से देख लो ! यशोदा जी ने कहा - अच्छी बात ! यदि ऐसा है तो मुँह खोल !' माता के ऐसा कहने पर भगवान् श्रीकृष्ण ने मुँह खोल दिया !
श्रीप्रेम-सुधा-सागर (३०)
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