अब आगे........
यदि हम हमलोग गोकुल और गोकुलवासियों का भला चाहते हैं, तो हमें यहाँ से अपना डेरा-डंडा उठा कर कूच कर देना चाहिए ! देखो, यह नन्दराय का लड़का सबसे पहले तो बच्चों के लिए काल-स्वरूपिणी हत्यारी पूतना के चंगुल से किसी प्रकार छूटा ! इसके बाद भगवान् की दूसरी कृपा यह हुई कि इसके ऊपर उतना बड़ा छकड़ा गिरते-गिरते बचा ! बवंडररूपधारी दैत्य ने तो इसे आकाश में ले जाकर बड़ी भारी विपत्ति (मृत्यु के मुख) में ही डाल दिया था, परन्तु वहां से जब वह चट्टान पर गिरा, तब भी हमारे कुल के देवेश्वरों ने ही इस बालक कि रक्षा कि ! इसलिए जब तक कोई बहुत बड़ा अनिष्टकारी अरिष्ट हमें और हमारे ब्रज को नष्ट न कर दे, तब तक ही हम लोग अपने बच्चों को लेकर अनुचरों के साथ यहाँ से अन्यत्र चले चलें ! 'वृन्दावन' नाम का एक वन है ! उसमें छोटे-छोटे और भी बहुत-से नए-नए हरे-भरे वन हैं ! गोप,गोपी और गायों के लिए वह केवल सुविधा का ही नहीं, सेवन करने योग्य स्थान है ! तो आज ही हमलोग वहां के लिए कूच कर दें ! देर न करें, गाड़ी-छकड़े जोतें और पहले गायों को, जो हमारी एकमात्र संपत्ति हैं, वहां भेज दें !
उपनंद कि बात सुनकर सभी गोपों ने एक स्वर से कहा - 'बहुत ठीक, बहुत ठीक' ! ग्वालों ने बूढों, बच्चों,स्त्रियों और सब सामग्रियों को छकड़ों पर चढ़ा दिए और स्वयं उनके पीछे-पीछे धनुष-बाण लेकर बड़ी सावधानी से चलने लगे ! उन्होंने गौ और बछड़ों को तो सबसे आगे कर लिया और उनके पीछे-पीछे सिंगी और तुरही जोर-जोर से बजाते हुए चले ! यशोदारानी और रोहिणीजी भी सज-धजकर अपने-अपने प्यारे पुत्र श्रीकृष्ण तथा बलराम के साथ एक छकड़े पर शोभायमान हो रही थीं ! वृन्दावन बड़ा ही सुन्दर वन है ! चाहे कोई भी ऋतु हो, वहां सुख-ही-सुख है ! वृन्दावन का हरा-भरा वन, अत्यंत मनोहर गोवर्धन पर्वत और यमुना नदी के सुन्दर-सुन्दर पुलिनों को देखकर भगवान् श्रीकृष्ण और बलराम जी के ह्रदय में उत्तम प्रीति का उदय हुआ !
श्रीप्रेम-सुधा-सागर (३०)
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