अब आगे.......
अपने सखा ग्वालबालों के दीनता से भरे वचन सुनकर भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा - 'डरो मत, तुम अपनी आँखें बंद कर लो' l भगवान् कि आज्ञा सुनकर उन ग्वालबालों ने कहा 'बहुत अच्छा' और अपनी ऑंखें मूँद लीं l तब योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण ने उस भंयकर आग को अपने मुंह से पी लिया l और इस प्रकार उन्हें उस घोर संकट से छुड़ा दिया l इसके बाद जब ग्वालबालों ने अपनी-अपनी आँखें खोलकर देखा, तब अपने को भांडीर वट के पास पाया l इस प्रकार अपने-आपको और गौओं को दावानल से बचा देख वे ग्वालबाल बहुत ही विस्मित हुए l श्रीकृष्ण की इस योगसिद्धि तथा योगमाया प्रभाव को एवं दावानल से अपनी रक्षा को देखकर उन्होंने यही समझा कि श्रीकृष्ण कोई देवता हैं l
सांयकाल होने पर बलरामजी के साथ भगवान् श्रीकृष्ण ने गौएँ लौटायीं और वंशी बजाते हुए उनके पीछे-पीछे ब्रज की यात्रा की l उस समय ग्वालबाल उनकी स्तुति करते आ रहे थे l इधर ब्रज में गोपियों को श्रीकृष्ण के बिना एक-एक क्षण सौ-सौ युग के समान हो रहा था l जब भगवान् श्रीकृष्ण लौटे तब उनका दर्शन करके वे परमानंद में मगन हो गयीं l बड़े-बड़े बूढ़े गोप और गोपियाँ भी राम और श्याम की अलौकिक लीलाएं सुनकर विस्मित हो गयीं l वे सब ऐसा मानने लगे कि 'श्रीकृष्ण और बलराम के वेष में कोई बहुत बड़े देवता ही ब्रज में पधारे हैं' l
श्रीप्रेम-सुधा-सागर (३०)
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