ग्वालबालों के कहा - हमारे चित्तचोर श्यामसुन्दर ! नयनाभिराम बलराम ! तुमने बड़े-बड़े दुष्टों का संहार किया है l उन्ही दुष्टों के समान यह भूख भी हमें सता रही है l अत: तुम दोनों इसे भी बुझाने का कोई उपाय करो l
जब ग्वालबालों ने देवकीनंदन भगवान् श्रीकृष्ण से इस प्रकार प्रार्थना के, तब उन्होंने मथुरा की अपनी भक्त ब्राह्मणपत्नियों पर अनुग्रह करने के लिए यह बात कही - 'मेरे प्यारे मित्रों ! यहाँ से थोड़ी ही दूर पर वेदवादी ब्राह्मण स्वर्ग की कामना से आंगिरस नाम का यज्ञ कर रहे हैं l तुम उनकी यज्ञशाला में जाओ l ग्वालबालों ! मेरे भेजने से वहां जाकर तुम लोग मेरे बड़े भाई भगवान् श्री बलरामजी का और मेरा नाम लेकर कुछ थोडा-सा भात - भोजन की सामग्री मांग लाओ' l जब भगवान् ने ऐसे आज्ञा दी, तब ग्वालबाल उस ब्राह्मणों की यज्ञशाला में गए और उनसे भगवान् की आज्ञा के अनुसार ही अन्न माँगा - 'पृथ्वी के मूर्तिमान देवता ब्राह्मणों ! आपका कल्याण हो ! आपसे निवेदन है कि हम ब्रज के ग्वाले हैं l भगवान् श्रीकृष्ण और बलराम कि आज्ञा से हम आपके पास आये हैं l आप हमारी बात सुने l भगवान् श्रीकृष्ण और बलराम गौएँ चराते हुए यहाँ से थोड़े ही दूर पर आये हुए हैं l उन्हें इस समय भूख लगी है और वे चाहते हैं कि आप लोग उन्हें थोडा-सा भात दे दें l इस प्रकार भगवान् के अन्न मांगने कि बात सुनकर भी उस ब्राह्मणों ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया l सच पूछो तो वे ब्राह्मण ज्ञान कि दृष्टि से थे बालक ही, परन्तु अपने को बड़ा ज्ञानवृद्ध मानते थे l जो अपने को शरीर ही माने बैठे हैं, भगवान् को भी एक साधारण मनुष्य ही माना और उनका सम्मान नहीं किया l जब उन ब्राह्मणों ने 'हाँ' या 'ना' - कुछ नहीं कहा, तब ग्वालबालों के आशा टूट गयी; वे लौट आये और वहां के सब बात उन्होंने श्रीकृष्ण तथा बलराम से कह दी l भगवान् श्रीकृष्ण हंसने लगे, उन्होंने ग्वालबालों को समझाया कि 'संसार में असफलता तो बार-बार होती ही है, उससे निराश नहीं होना चाहिए; बार-बार प्रयत्न करते रहने से सफलता मिल ही जाती है l 'मेरे प्यारे ग्वालबालों ! इस बार तुमलोग उनकी पत्नियों के पास जाओ और उनसे कहो कि राम और श्याम यहाँ आये हैं l तुम जितना चाहोगे उतना भोजन वे तुम्हें देंगी l वे मुझसे बड़ा प्रेम करती हैं , उनका मन सदा-सर्वदा मुझ में लगा रहता है' l
श्रीप्रेम-सुधा-सागर (३०)
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