जीवन में उतारने योग्य भाईजी की अतुल संपत्ति — १.सबमें भगवान् को देखना २.भगवत्कृपा पर अटूट विश्वास ३.भगवन्नाम का अनन्य आश्रय | भगवान् में विश्वास करनेवाले सच्चे वे ही हैं,जिनका विश्वास विपत्तिकी अवस्थामें भी नहीं हिलता। जो सम्पत्तिमें भगत्कृपा मानते हैं और विपत्तिमें नहीं, वे सच्चे विश्वासी नहीं हैं। भगवान् की रुचिके सामने अपनी रुचि रखनेसे कोई लाभ नहीं होता। उनकी रुचि ही कल्याणमयी है। उनकी रुचिके लिये सदा अपनी रुचिका त्याग कर देना चाहिये। कामनाओंकी पूर्ति कामनाओंके विस्तारका हेतु होती है। सच्चा आनन्द कामनाकी पूर्तिमें नहीं कामनापर विजय प्राप्त करनेमें है। विषय-चिन्तन, विषयासक्ति, विषयकामना,विषय-भोग सभी महान् दुःख उत्पन्न करनेवाले हैं और नरकाग्निमें जलानेके हेतु हैं। भजन मन, वचन और तन—तीनोंसे ही करना चाहिये। भगवान् का चिन्तन मनका भजन है, नाम-गुण-गान वचनका भजन है और भगवद्भावसे की हुई जीवसेवा तनका भजन है। भगवान् की कृपा सभीपर है, परंतु उस कृपाके तबतक दर्शन नहीं होते, जबतक मनुष्य उसपर विश्वास नहीं करता और भगवत्कृपाके सामने लौकिक-पारलौकिक सारे भोगों और साधनोंको तुच्छ नहीं समझ लेता। तन-मनसे भजन न बन पड़े तो केवल वचनसे ही भजन करना चाहिये। भजनमें स्वयं ऐसी शक्ति है कि जिसके प्रतापसे आगे चलकर अपने-आप ही सब कुछ भजनमय हो जाता है।
ॐ कलीं श्रीराधाकृष्णाभ्यां नम:

सोमवार, जून 04, 2012

यज्ञपत्नियों पर कृपा






             ग्वालबालों के कहा - हमारे चित्तचोर श्यामसुन्दर  ! नयनाभिराम बलराम ! तुमने बड़े-बड़े दुष्टों का संहार किया है l  उन्ही दुष्टों के समान यह भूख भी हमें सता रही है l अत: तुम दोनों इसे भी बुझाने का कोई उपाय करो l
              जब ग्वालबालों ने देवकीनंदन भगवान् श्रीकृष्ण से इस प्रकार प्रार्थना के, तब उन्होंने मथुरा की अपनी भक्त ब्राह्मणपत्नियों  पर अनुग्रह करने के लिए यह बात कही  - 'मेरे प्यारे मित्रों ! यहाँ से थोड़ी ही दूर पर वेदवादी ब्राह्मण स्वर्ग की कामना से आंगिरस नाम का यज्ञ कर रहे हैं l तुम उनकी यज्ञशाला में जाओ l ग्वालबालों ! मेरे भेजने से वहां जाकर तुम लोग मेरे बड़े भाई भगवान् श्री बलरामजी का और मेरा नाम लेकर कुछ थोडा-सा भात  - भोजन की सामग्री मांग लाओ' l जब भगवान् ने ऐसे आज्ञा दी, तब ग्वालबाल उस ब्राह्मणों की यज्ञशाला में गए और उनसे भगवान् की आज्ञा के अनुसार ही अन्न माँगा - 'पृथ्वी के मूर्तिमान देवता ब्राह्मणों ! आपका कल्याण हो ! आपसे निवेदन है कि हम ब्रज के ग्वाले हैं l भगवान् श्रीकृष्ण और बलराम कि आज्ञा से हम आपके पास आये हैं l  आप हमारी बात सुने l भगवान् श्रीकृष्ण और बलराम गौएँ चराते हुए यहाँ से थोड़े ही दूर पर आये हुए हैं l  उन्हें इस समय भूख लगी है और वे चाहते हैं कि आप लोग उन्हें थोडा-सा भात दे दें l इस प्रकार भगवान् के अन्न मांगने कि बात सुनकर भी उस ब्राह्मणों ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया l सच पूछो तो वे ब्राह्मण ज्ञान  कि दृष्टि से थे बालक ही, परन्तु अपने को बड़ा ज्ञानवृद्ध मानते थे l जो अपने को शरीर ही माने बैठे हैं, भगवान् को भी एक साधारण मनुष्य ही माना और उनका सम्मान नहीं किया l जब उन ब्राह्मणों  ने 'हाँ' या 'ना'  - कुछ नहीं कहा, तब ग्वालबालों के आशा टूट गयी; वे लौट आये और वहां के सब बात उन्होंने श्रीकृष्ण तथा बलराम से कह दी l भगवान् श्रीकृष्ण हंसने लगे, उन्होंने ग्वालबालों को समझाया कि 'संसार में असफलता तो बार-बार होती ही है, उससे निराश नहीं होना चाहिए; बार-बार प्रयत्न करते रहने से सफलता मिल ही जाती है l  'मेरे प्यारे ग्वालबालों ! इस बार तुमलोग उनकी पत्नियों के पास जाओ और उनसे कहो कि  राम और श्याम  यहाँ आये हैं l  तुम जितना चाहोगे उतना भोजन वे तुम्हें देंगी l  वे मुझसे  बड़ा प्रेम करती हैं , उनका मन सदा-सर्वदा मुझ में लगा रहता है' l

श्रीप्रेम-सुधा-सागर (३०)  

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