अब आगे.......
भगवान् ने देखा कि वर्षा और ओलों कि मार से पीड़ित होकर सब बेहोश हो रहे हैं l वे समझ गए कि यह सारी करतूत इन्द्र की है l उन्होंने ने ही क्रोध वश ऐसा किया है l हमने इन्द्र का यज्ञ-भंग कर दिया है, इसी से ब्रज का नाश करने के लिए बिना ऋतु के ही यह प्रचण्ड वायु और ओलों के साथ घनघोर वर्षा कर रहे हैं l ये मूर्खता वश अपने को लोकपाल मानते हैं, इनके ऐश्वर्य और धन का घमण्ड तथा अज्ञान मैं चूर-चूर कर दूंगा l देवता लोग तो सत्वप्रधान होते हैं l अत: यह उचित ही है कि इन सत्वगुण से च्युत दुष्ट देवताओं का मैं मान-भंग कर दूँ l इस से अंत में उन्हें शांति ही मिलेगी l अत: इस सारे ब्रज को मैं अपनी योगमाया से इसकी रक्षा करूँगा l संतों कि रक्षा करना तो मेरा व्रत ही है l
इस प्रकार कहकर भगवान् श्रीकृष्ण ने खेल-खेल में एक ही हाथ से गिरिराज गोवर्द्धन को उखाड़ लिया और उन्होंने उस पर्वत को धारण कर लिया l इसके बाद भगवान् ने गोपों से कहा - तुमलोग अपनी गौओं और सब सामग्रियों के साथ इस पर्वत के गड्ढे में आकर आराम से बैठ जाओ l जब भगवान् श्रीकृष्ण ने इस प्रकार सब को आश्वासन दिया - तब सब-के-सब अपने सुभीते के अनुसार गोवर्द्धन के गड्ढे में आ घुसे l भगवान् श्रीकृष्ण ने सब कुछ भुलाकर सात दिन तक लगातार उस पर्वत को उठाये रखा l वे एक डग भी इधर-उधर नहीं हुए l श्रीकृष्ण की योगमाया का यह प्रभाव देखकर इन्द्र के आश्चर्य का ठिकाना न रहा l इस के बाद उन्होंने मेघों को अपने-आप वर्षा करने से रोक दिया l भगवान् श्रीकृष्ण ने गोपों से कहा - देखो, अब तुमलोग निडर हो जाओ,अब आंधी-पानी बंद हो गया तथ नदियों का पानी भी उतर गया l सर्वशक्तिमान भगवान् श्रीकृष्ण ने भी सब प्राणियों के देखते-देखते खेल-खेल में ही गिरिराज को पूर्ववत उसके स्थान पर रख दिया l यह देखकर कोई उन्हें ह्रदय से लगाने और कोई चूमने लगा l सबने उनका सत्कार किया l उस समय आकाश में स्थित, देवता, साध्य, सिद्ध, गन्धर्व और चारण आदि प्रसन्न होकर भगवान् की स्तुति करते हुए उन पर फूलों की वर्षा करने लगे l
श्रीप्रेम-सुधा-सागर(३०)
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