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गोपियों का सौभाग्य लक्ष्मीजी से भी बढ़कर है l भगवान् श्रीकृष्ण ने उनके गलों को अपने भुजपाश में बाँध रखा था, उस समय गोपियों के बड़ी अपूर्व शोभा थी l वे रास मण्डल में भगवान् श्रीकृष्ण के साथ नृत्य कर रही थीं l उनके कंगन और पायजेबों के बाजे बज रहे थे l जैसे नन्हा-सा शिशु निर्विकारभाव से अपनी परछाईं के साथ खेलता है, वैसे ही रमारमण भगवान् श्रीकृष्ण कभी उन्हें अपने ह्रदय से लगा लेते, कभी प्रेमभरी तिरछी चितवन से उनकी ओर देखते, तो कभी लीला से उन्मुक्त हँसी हसने लगते l भगवान् श्रीकृष्ण की यह रास क्रीडा देखकर स्वर्ग की देवांगनाएँ भी मिलन की कामना से मोहित हो गयीं और समस्त तारों और ग्रहों के साथ चन्द्रमा चकित, विस्मित हो गए l यद्यपि भगवान् आत्माराम हैं - उन्हें अपने अतिरिक्त और किसी की भी आवश्कता नहीं है - फिर भी उन्होंने जितनी गोपियाँ थीं, उतने ही रूप धारण किये और खेल-खेल में उनके साथ इस प्रकार विहार किया l भगवान् के करकमल और नखस्पर्श गोपियों को बड़ा आनन्द हुआ l उन्होंने प्रेमभरी चितवन से, जो सुधा से भी मीठी मुसकान से उज्जवल हो रही थी, भगवान् श्रीकृष्ण का सम्मान किया और प्रभु की परम पवित्र लीलाओं का गान करने लगीं l इसके बाद भगवान् श्रीकृष्ण ब्रज युवतियों और भोरों की भीड़ से घिरे हुए यमुनातट के उपवन में गए l वह बड़ा ही रमणीय था l शरद की वह रात्रि जिसके रूप में अनेक रात्रियाँ पुन्जीभूत हो गयी थीं, बहुत ही सुन्दर थीं l भगवान् श्रीकृष्ण ने अपनी प्रेयसी गोपियों के साथ यमुना के पुलिन , यमुना जी और उनके उपवन में विहार किया l यह बात स्मरण रखनी चाहिए कि भगवान् सत्यसंकल्प हैं l यह सब उनके चिन्मय संकल्प की ही चिन्मय लीला है l और उन्होंने इस लीला में कामभाव को , उसकी चेष्टाओं को तथा उसकी क्रियाओं को सर्वथा अपने अधीन कर रखा था, उन्हें अपने-आप में कैद कर रखा था l
श्रीप्रेम-सुधा-सागर(३०)
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