मृत्यु के समय क्या करे ?
७. गले में रूचि के अनुसार तुलसी या रूद्राक्षके माला पहना दे | मस्तक पर रूचि के अनुसार त्रिपुंड या उधृरपुंडतिलक का पवित्र चन्दनसे - -गोपीचंदन आदि से कर दे | अपवित्र केसर का तिलक न करे |
७. रोगी के निकट रामरक्षा या मृत्युंजयस्रोत्र का पथ करे | एकदम अंतिम समय में पवित्र 'नारायण' नाम की विपुल धवनि करे |
९. रोगी को कस्ट का अनुभव न होता दीखे तोह गंगाजल या सुद् जल से उसे स्नान करा दे | कस्ट हो ताहो तोहनकरावे |
१०. विशेष कस्ट न हो ताहो जमीं को धोकर उस पर गंगाजल ( हो तो ) के छींटे देकर भगवान्कानाम लिखकर गंगा की रज या व्रजरज दाल करचारपाई से निचे सुला दे |
११. मृत्यु के समय तथा मृत्यु के बाद भी 'नारायण' नाम की याअपने ईस्टभगवान् के तुमुल धवनि करे | जब तक अर्थी चली न जाये ,तब तक यथा शक्य कोई घरवाले रोये नहीं |
१२. उसके शव को दक्षिण की और पैर करके सुला दे | तदन्तर सुद्ध जल से स्नान करवाकर, नविन धुला हुआ वस्त्र पहनाकरजातिप्रथा के अनुसार शव यात्रा ले जाये ; पर पिंडदान का कार्यजानकारविद्वान के द्वारा अवस्य कराया जाये | सम्शान में भी पिंडदान तथा अग्निसंस्कार का कार्य शास्त्रविधि के अनुसार किया जाये |रास्ते भर भगवान्नाम की धवनि, 'हरीबोल' . नारायण नारायण के धवनि होती रहे | सम्शान में भी भाग्वाचर्चा ही हो |
दुःखमेंभगवतकृपा , हनुमानप्रसादपोद्दार , गीताप्रेस गोरखपुर, पुस्तक कोड ५१४, पेज न १२९-१३०
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