- जो इश्वर के चरण-कमल पकड़ लेता है , वह संसार से नहीं डरता |
- पहले इश्वर के प्राप्ति का यत्न करो, पीछे जो इच्छा हो कर लेना |
- गुरु लाखो मिलते है , पर चेला एक भी नहीं मिलता | उपदेश करने वाले अनेको मिलते है, पर उपदेश पालन करने वाले विरले ही |
- भक्त का ह्रदय भगवान् की बैठक है |
- संसार के यश और निंदा की कोई परवाह न करके इश्वर के पथ मैं ही चलना चाहिए |
- एक महात्मा की कृपा से कितने जीवो का उद्धार हो जाता है |
- साधक के भीतर यदि कुछ भी आसक्ती है तोह समस्त साधना वर्थ चली जाएगी |
- जिसका जैसा भाव होता है, उसको वैसा ही फल मिलता है |
- जिस घर में नित्य हरी कीर्तन होता है वहा कलियुग प्रवेश नहीं कर सकता |
- नाम-भजन के कई प्रकार हैं- जप , स्मरण और कीर्तन। इनमें सबसे पहले जप की बात कही जाती है। परमात्मा के जिस नाम में रुचि हो , जो अपने मन को रुचिकर हो उसी नाम की परमात्मा की भावना से बारम्बार आवृत्ति करने का नाम ' जप ' है। जप की शास्त्रों में बड़ी महिमा है। जप को यज्ञ माना है और श्री गीताजी में भगवान के इस कथन से कि ' यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि ' ( यज्ञों में जप-यज्ञ मैं हूँ) जप का महत्त्व बहुत ही बढ़ गया है। जप के तीन प्रकार हैं-साधारण , उपांशु और मानस। इनमें पूर्व-पूर्व से उत्तर-उत्तर दस गुणा अधिक फलदायक है। भगवान मनु कहते हैं – विधियज्ञाज्जपयज्ञो विशिष्टो दशभिर्गुणैः। उपांशुः स्याच्छतगुणः साहस्रो मानसः स्मृतः॥ दर्श-पौर्णमासादि विधि यज्ञों से (यहाँ मनु महाराज ने भी विधि यज्ञों से जप-यज्ञ को ऊँचा मान लिया है) साधारण जप दस श्रेष्ठ है , उपांशु-जप सौ गुणा श्रेष्ठ है और मानस-जप हजार गुणा श्रेष्ठ है। जो फल साधारण जप के हजार मन्त्रों से होता है वही फल उपांशु जप के सौ मन्त्रों से और मानस-जप के एक मंत्र से हो जाता है। उच्च स्वर से होने वाले जप को साधारण जप क
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