मृत्यु के समय क्या करे ?
मृत्यु के समय सबसे बड़ी सेवा है - किसी भी उपाय से मरणासन्न रोगी का मन संसार से हटा कर भगवान् में लगा देना | इसके लिए:-
१. उसके पास बैठ कर घर की,संसार की, कारोबार की, किन्ही में राग द्वेष हो तोह उनकी ममता के पदार्थो की तथा अपने दुःख की चर्चा बिलकुल न करे |
२. जब तक चेत रहे, भगवान् के स्वरुप की, लीला की तथा उनके तत्त्व के बात सुनाये,श्रीमद्भगवत गीता का
(सातवे,नवे,बारहवे,चौदहवे,पन्द्रहवे अध्याय का विशेष रूप से) अर्थ सुनावे | भागवत के एकादश स्कंध,योग्वासिस्ट का वैराग्य प्रकरण,उपनिषदों के चुने हुए स्थलओ का अर्थ सुनावे | नाम कीर्तन में रूचि हो तोह नाम कीर्तन करे या संतो बह्क्तो के पद सुनाये | जगत के प्राणी पदार्थो की , राग द्वेष उत्पन्न करने वाली बात, ममता मोह को जगाने वाली बात तथा बढ़ाने वाली चर्चा भूल कर भी न करे |
३. रोगी को भगवान् के साकार रूप का प्रेमी हो तोह उसको अपने ईस्ट -भगवान् राम,कृष्ण,शिव,दुर्गा,गणेश-किसी भी भगवत रूप का मनोहर चित्र सतत दिखाते रहे | निराकार निर्गुण का उपासक हो तोह उसे आत्मा या ब्रह्म के सच्चिदानंद अद्वेत तत्व के चर्चा सुनाये |
४. उस स्थान को पवित्र धुप, धुए ,कपूर से सुगन्धित रखे , कपूर या घी के दीपक के शीतल परमोज्व्ल ज्योति उसे दिखावे |
५. समर्थ हो और रूचि हो तोह उसके द्वारा उसके ईस्ट भगवत्स्वरूप की मूर्ती का पूजन करवावे |
६. कोई भी अपवित्र वास्तु या दवा उसे न दे | चिकत्सको की राय हो तो भी उसे ब्रांडी (सराब) नशीली तथा जान्तव पदार्थो से बनी ऐलोपथी , होम्योपैथी दअवा बिलकुल न दे | जिन आयुर्वेदिक दवा में अपिवित्र तथा जान्तव चीजे पड़ी हो , उनको भी न दे | ने खान पान में अपवित्र तामसी तथा जान्तव पदार्थ दे |
७. रोगी के क्षमता के अनुसार गंगाजल का अधिक से अधिक या कम पान करावे | उसमे तुलसी के पते अलग पिस कर छानकर मिला दे | यो तुलसिमिस्रित गंगाजल पिलाता रहे |
दुःख में भगवत कृपा , हनुमानप्रसाद पोद्दार , गीता प्रेस गोरखपुर, पुस्तक कोड ५१४, पेज न १२८-१२९
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