जीवन में उतारने योग्य भाईजी की अतुल संपत्ति — १.सबमें भगवान् को देखना २.भगवत्कृपा पर अटूट विश्वास ३.भगवन्नाम का अनन्य आश्रय | भगवान् में विश्वास करनेवाले सच्चे वे ही हैं,जिनका विश्वास विपत्तिकी अवस्थामें भी नहीं हिलता। जो सम्पत्तिमें भगत्कृपा मानते हैं और विपत्तिमें नहीं, वे सच्चे विश्वासी नहीं हैं। भगवान् की रुचिके सामने अपनी रुचि रखनेसे कोई लाभ नहीं होता। उनकी रुचि ही कल्याणमयी है। उनकी रुचिके लिये सदा अपनी रुचिका त्याग कर देना चाहिये। कामनाओंकी पूर्ति कामनाओंके विस्तारका हेतु होती है। सच्चा आनन्द कामनाकी पूर्तिमें नहीं कामनापर विजय प्राप्त करनेमें है। विषय-चिन्तन, विषयासक्ति, विषयकामना,विषय-भोग सभी महान् दुःख उत्पन्न करनेवाले हैं और नरकाग्निमें जलानेके हेतु हैं। भजन मन, वचन और तन—तीनोंसे ही करना चाहिये। भगवान् का चिन्तन मनका भजन है, नाम-गुण-गान वचनका भजन है और भगवद्भावसे की हुई जीवसेवा तनका भजन है। भगवान् की कृपा सभीपर है, परंतु उस कृपाके तबतक दर्शन नहीं होते, जबतक मनुष्य उसपर विश्वास नहीं करता और भगवत्कृपाके सामने लौकिक-पारलौकिक सारे भोगों और साधनोंको तुच्छ नहीं समझ लेता। तन-मनसे भजन न बन पड़े तो केवल वचनसे ही भजन करना चाहिये। भजनमें स्वयं ऐसी शक्ति है कि जिसके प्रतापसे आगे चलकर अपने-आप ही सब कुछ भजनमय हो जाता है।
ॐ कलीं श्रीराधाकृष्णाभ्यां नम:

सोमवार, जुलाई 23, 2012

महामना मालवीय जी के कुछ भगवनाम -सम्बन्दी संस्मरण

महामना मालवीय जी के कुछ भगवनाम -सम्बन्दी संस्मरण
महामना एक बार गोरखपुर पधारे थे और मेरे पास ही दो तीन दिन ठहरे थे | उनके पधारने के दुसरे दिन प्रात: काल में उनके चरणों में बैठा था | वे अकेले ही थे | बड़े स्नेह से बोले -"भैया ! मैं तुम्हे आज एक दुर्लभ तथा बहुमूल्य वस्तु देने चाहता हु | मैंने इसको अपनी माता से वरदान के रूप में प्राप्त किया था | बड़ी अद्भुत वस्तु है | किसी को आज तक नहीं दी , तुमको दे रहा हु | देखने में चीज छोटी से दिखेगी पर है महान 'वरदान रूप' | इस प्रकार प्राय आधे घंटे तक वे उस वस्तु के मेहता पर बोलते गए | मेरी जिज्ञासा भी बढती गयी | मैंने आतुरता से पूछा - 'बाबू जी ! जल्दी दीजिये , कोई आ जायेंगे |' तब वे बोले - लगभग चालिश वर्ष पहले की बात है | एक दिन मैं अपनी माता जी के पास गया और बड़ी विनय के साथ उन्स्से यह वरदान माँगा के आप ऐसा वरदान दीजिये , जिससे में कही भी जाऊ सफलता प्राप्त करू |' "माता जी ने स्नेह से मेरे शीर पर हाथ रखा और कहा - 'बच्चा - ! बड़ी दुर्लभ चीज दे रही हु | तुम जब कही भी जाओ तोह जाने के समय 'नारायण नारायण ' उच्चारण कर लिया करो | तुम सदा सफल होअगे |' मैंने स्राध्हा पूर्वक सर चढ़ा कर माता जी से मन्त्र ले लिया | हनुमानप्रसाद ! मुझे स्मरण है, तबसे अभ तक में जब जब 'नारायण नारायण' उच्चारण करना भुला हु, तब तब असफल हुआ हु |नहीं तोह मेरे जीवन में - चलते समय 'नारायण नारायण ' उच्चारण कर लेने के प्रभाव से कभी असफलता नहीं मिली | आज यह महामंत्र परम दुर्लभ वस्तु मेरी माता की दी हुई महान वस्तु तुम्हे दे रहा हु | तुम इससे लाभ उठाना |" यो कह कर महामना गदगद हो गए | मैंने उनका वरदान सर चढ़ा कर स्वीकार किया और इससे बड़ा लाभ उठाया | अभ तोह ऐसा हो गया है के घर भर में सभी इसे सीख गए है | जब कभी घर से बहार निकलता हु , तभी बच्चे भी 'नारायण नारायण' उच्चारण करने लगते है | इस प्रकार रोज ही किसी दिन तोह कोई 'नारायण' की और साथ हे पूज्य माता जी के पवित्र स्मृति हो जाती है |

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