प्रार्थना के कुछ अच्छे रूप या भाव ये हैं –
१ भगवन ! तुम्हारा मंगलमय संकल्प पूर्ण हो |
२ भगवन! तुम्हारी मंगलमयी चाह पूर्ण हो| मेरे मनमे कोई चाह उत्पन्न ही न हो, हो तो तुम्हारी चाह के अनुकूल हो| तुम्हारी चाह के अतिरिक्त और कोई चाह कभी उत्पन्न ही न हो | कदाचित तुम्हारी चाह के प्रतिकूल कोई चाह उत्पन्न हो तो उसे कभी पूरा न करना |
३ भगवन् ! समस्त चर-अचर प्राणियों में मैं सदा तुम्हारा दर्शन कर सकूँ और तुम्हारी दी हुयी प्रत्येक सामग्री से और शक्ति से यथासाध्य सबकी सेवा कर सकूँ |
४ भगवन् !अखिल विश्व – ब्रह्माण्ड के मंगल में ही मुझे अपना मंगल दिखाई दे | मेरे मन में कोई भी इसी मंगल कामना न हो , जो किसी भी प्राणी के मंगल से विरुद्ध हो |
५ भगवन् ! मेरा ‘स्व’ असीम रूप से अखिल विश्व में विस्तृत हो जाय | अखिल विश्व का 'स्वार्थ' ही मेरा 'स्वार्थ' हो | मेरा कोई भी स्वार्थ ऐसा न हो, जो अखिल विश्व के किसी भी प्राणी के स्वार्थका बाधक हो और साधक न हो |
६ भगवन् ! मेरे जीवन का प्रत्येक श्वास तुम्हारी मंगलमयी स्मृति में सना रहे और मेरी प्रत्येक चेष्ठा केवल तुम्हारी सेवाके लिए हो |
प्रार्थना {प्रार्थना-पीयूष} पुस्तक से कोड- 368 – श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार (शेष अगले ब्लॉग में )
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