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उत्साह रखना चाहिए







     वर्तमान समय और परिस्थिति ऐसी है कि लोगों के विचार और वृतियाँ अधिकांश बुरे मार्ग की ओर खिंच जाती हैं l परन्तु आपने तो बचपन  से ही अपने पिताजी की छत्रछाया में रहकर धार्मिक शिक्षा ग्रहण की है और आपकी रूचि भी सदाचार पालन  की ओर है, इसलिए आप अवश्य ही दृढ़ता पूर्वक बुरे विचारों और वृतियों से बचने का प्रयत्न करेंगे, ऐसी आशा है l आजकल के स्कूल-कालेजों की अवस्था तो और भी भयंकर है l आपके......ने आपको स्कूल से अलग कर लिया, इससे आप उदास न हों l  इसे भगवान् की कृपा समझें और घर पर ही सदाचार और सत्संग सम्बन्धी पुस्तकों का अध्ययन करके अपना ज्ञान बढ़ाएं l  कभी निराश एवं उदास न हों l सर्वदा उत्साह रखें l अपने भोजन, अध्ययन और घर के काम-काज को इतना नियमित और सात्विक बना लें कि उसमें एक क्षण के लिए भी प्रमाद को अवसर न रहे l ऐसा करने से आपका शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार का स्वस्थ्य ठीक होने लगेगा l  इन सब बातों के साथ-ही-साथ यदि आप नियमित रूप से भगवान् के नाम का जप और उनके सामने अपने कष्ट का निवेदन शुरू कर दें  तो आपकी अधिकांश विपत्तियाँ स्वयं ही नष्ट हो जाएँगी l आप अभी नौजवान हैं l आपकी रग-रग में उत्साह और स्फूर्ति कि धरा दौड़ती रहनी चाहिए l भगवान् के वरद करकमलों कि छत्रछाया सदा ही हमारे सिर पर है और वे निरन्तर हमारा कल्याण कर रहे हैं - ऐसा दृढ विश्वास रखिये और शोक-मोह छोड़कर निरन्तर  प्रसन्न  रहिये l


लोक-परलोक-सुधार-१(३५३)
           

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