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कुल-परम्परा से यदि घर में श्रीविष्णु की अथवा देवी की पूजा होती चली आ रही तो उसका पालन होना ही चाहिए l कुल के प्रत्येक व्यक्ति को उस परम्परा की रक्षा में सहयोग करना चाहिए l इस के अतिरिक्त अपनी श्रद्धा-भक्ति के अनुसार जिन्हें ह्रदय के सिंहासन पर बिठाया है उन श्रीकृष्ण अथवा श्रीराम आदि इष्टदेव की पूजा भी करनी चाहिए l उस व्यक्ति के लिए, जिसके श्रीकृष्ण ही इष्टदेव हैं, श्रीकृष्ण की ही पूजा प्रधान है, वह केवल श्रीकृष्ण की प्रतिमा अथवा चित्रपट का पूजन करे l शालग्राम-शिल्प का भी श्रीकृष्ण भाव से पूजन करने से कोई आपत्ति नहीं है l श्रीकृष्ण के पार्षदों अथवा अन्तरंग शक्तियों का पूजन भिन्न-भिन्न तन्त्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार से बताया गया है l साधारणतया आप श्रीकृष्ण के साथ श्रीराधारानी का पूजन कर सकते हैं l
इष्ट-प्रतिमा या चित्रपट में प्राणप्रतिष्ठा करना उत्तम है, किन्तु उसकी पूजा आदि की व्यवस्था में किसी प्रकार की त्रुटि नहीं होनी चाहिए l उसका वैदिक विधि से संस्कार होने पर अन्य असंस्कृत व्यक्तियों, स्त्रियों तथा अस्पृश्यों के स्पर्श से उसे बचाना तथा नित्य-नियमपूर्वक उसके पूजन, भोग आदि की सुन्दर व्यवस्था करना आवश्यक है l यदि इस तरह की व्यवस्था और विधि-निषेध के पालन में अड़चन हो तो वैदिक विधि से प्राणप्रतिष्ठा न करके भावना द्वारा भगवान् को सर्वत्र व्यापक देखते हुए प्रेमपूर्वक उनका पूजन करना चाहिए l
जहाँ भगवान् में गुरुभावना है, वहां दूसरे किसी गुरु के बिना भी भजन-साधन में कोई भय की बात नहीं है l रुद्राक्ष अथवा तुलसी की माला पर आप जप कर सकते हैं l माला न हो तो कर-माला पर जप कर सकते हैं l
गायत्री-मन्त्र का जप करते समय ध्यान आप अपनी रूचि के अनुसार देवी गायत्री, भगवान् सूर्य अथवा इष्टदेव भगवान् का कर सकते हैं l निर्गुण-निराकार ब्रह्म का ध्यान भी किया जा सकता है l नाम-जप परत:-सायं के अतरिक्त सर्वदा सब कार्य करते समय भी कर सकते हैं l समष्टि-कीर्तन में आप सब के साथ 'हरे राम ' मन्त्र का उच्च स्वर से उच्चारण कर सकते हैं l यह मन्त्र -प्रकाशन नहीं है l शेष भगवत्कृपा l
सुख-शान्ति का मार्ग(३३३)