जीवन में उतारने योग्य भाईजी की अतुल संपत्ति — १.सबमें भगवान् को देखना २.भगवत्कृपा पर अटूट विश्वास ३.भगवन्नाम का अनन्य आश्रय | भगवान् में विश्वास करनेवाले सच्चे वे ही हैं,जिनका विश्वास विपत्तिकी अवस्थामें भी नहीं हिलता। जो सम्पत्तिमें भगत्कृपा मानते हैं और विपत्तिमें नहीं, वे सच्चे विश्वासी नहीं हैं। भगवान् की रुचिके सामने अपनी रुचि रखनेसे कोई लाभ नहीं होता। उनकी रुचि ही कल्याणमयी है। उनकी रुचिके लिये सदा अपनी रुचिका त्याग कर देना चाहिये। कामनाओंकी पूर्ति कामनाओंके विस्तारका हेतु होती है। सच्चा आनन्द कामनाकी पूर्तिमें नहीं कामनापर विजय प्राप्त करनेमें है। विषय-चिन्तन, विषयासक्ति, विषयकामना,विषय-भोग सभी महान् दुःख उत्पन्न करनेवाले हैं और नरकाग्निमें जलानेके हेतु हैं। भजन मन, वचन और तन—तीनोंसे ही करना चाहिये। भगवान् का चिन्तन मनका भजन है, नाम-गुण-गान वचनका भजन है और भगवद्भावसे की हुई जीवसेवा तनका भजन है। भगवान् की कृपा सभीपर है, परंतु उस कृपाके तबतक दर्शन नहीं होते, जबतक मनुष्य उसपर विश्वास नहीं करता और भगवत्कृपाके सामने लौकिक-पारलौकिक सारे भोगों और साधनोंको तुच्छ नहीं समझ लेता। तन-मनसे भजन न बन पड़े तो केवल वचनसे ही भजन करना चाहिये। भजनमें स्वयं ऐसी शक्ति है कि जिसके प्रतापसे आगे चलकर अपने-आप ही सब कुछ भजनमय हो जाता है।
ॐ कलीं श्रीराधाकृष्णाभ्यां नम:

सोमवार, सितंबर 24, 2012

गुरु किसको करें ?






अब आगे.........


          कुल-परम्परा से यदि घर में श्रीविष्णु की अथवा देवी की पूजा होती चली आ रही तो उसका पालन होना ही चाहिए l  कुल के प्रत्येक व्यक्ति को उस परम्परा की रक्षा में सहयोग करना चाहिए l इस के अतिरिक्त अपनी श्रद्धा-भक्ति के अनुसार जिन्हें ह्रदय के सिंहासन पर बिठाया है उन श्रीकृष्ण अथवा श्रीराम आदि इष्टदेव की पूजा भी करनी  चाहिए l  उस व्यक्ति के लिए, जिसके श्रीकृष्ण ही इष्टदेव हैं, श्रीकृष्ण की ही पूजा प्रधान है, वह केवल श्रीकृष्ण की प्रतिमा अथवा चित्रपट का पूजन करे l  शालग्राम-शिल्प का भी श्रीकृष्ण भाव से पूजन करने से कोई आपत्ति नहीं है l  श्रीकृष्ण के पार्षदों अथवा अन्तरंग शक्तियों का पूजन भिन्न-भिन्न तन्त्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार से बताया गया है l साधारणतया आप श्रीकृष्ण के साथ श्रीराधारानी का पूजन कर सकते हैं l
          इष्ट-प्रतिमा या चित्रपट में प्राणप्रतिष्ठा करना उत्तम है, किन्तु उसकी पूजा आदि की व्यवस्था में किसी प्रकार की त्रुटि नहीं होनी चाहिए l  उसका वैदिक विधि से संस्कार होने पर अन्य असंस्कृत व्यक्तियों, स्त्रियों तथा अस्पृश्यों के स्पर्श से उसे बचाना तथा नित्य-नियमपूर्वक उसके पूजन, भोग आदि की सुन्दर व्यवस्था करना आवश्यक है l  यदि इस तरह की व्यवस्था और विधि-निषेध के पालन में अड़चन हो तो वैदिक विधि से प्राणप्रतिष्ठा न करके भावना द्वारा भगवान् को सर्वत्र व्यापक देखते हुए प्रेमपूर्वक उनका पूजन करना चाहिए l
           जहाँ भगवान् में गुरुभावना है, वहां दूसरे किसी गुरु के बिना भी भजन-साधन में कोई भय की बात नहीं है l रुद्राक्ष अथवा तुलसी की माला पर आप जप कर सकते हैं l  माला न हो तो कर-माला पर जप कर सकते हैं l
           गायत्री-मन्त्र का जप करते समय ध्यान आप अपनी रूचि के अनुसार देवी गायत्री, भगवान् सूर्य अथवा इष्टदेव भगवान् का कर सकते हैं l  निर्गुण-निराकार ब्रह्म का ध्यान भी किया जा सकता है l नाम-जप परत:-सायं के अतरिक्त सर्वदा सब कार्य करते समय भी कर सकते हैं l समष्टि-कीर्तन में आप सब के साथ 'हरे राम ' मन्त्र का उच्च स्वर से उच्चारण कर सकते हैं l यह मन्त्र -प्रकाशन नहीं है l  शेष भगवत्कृपा l


सुख-शान्ति का मार्ग(३३३)