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सुखी होनेका सर्वोत्तम उपाय



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यदि कृपा पर विश्वास हो तो परिस्थिति कुछ भी हो , प्रत्येक परिस्थिति में भगवान की कृपा की अनुभूति होती है भगवद-विश्वासी पुरुष को । परिस्थिति में भगवान की कृपा का सत्कार और तिरस्कार हो तो परिस्थिति की  महत्ता है , कृपा की महत्ता नहीं है। कृपा की महता क्यों नहीं है ? इसलिए कि विश्वास नहीं है । यह तो सीधा अमंगल हो रहा है, इसमें कृपा कहाँ है ? हमारा जो मंगल है, उस मंगल की भावना हमारे मन की कल्पना ही है । भगवान जो करते हैं हमारा मंगल ही करते हैं ,यह हमारा विश्वास नहीं ।
            इसलिए साधक के लिए भगवद-विश्वास परम आवश्यक है  और अन्य सबके लिए भी आवश्यक है । जगत में जो सुखी होना चाहता है उसके लिए परम साधन है – भगवद-विश्वास ।
            ‘मसकहि करइ बिरंचि प्रभु अजहि मसक ते  हीन ।’
                               (रा० च० मा० ७|१२२ ख)                  
भगवान यदि चाहें तो मच्छर को ब्रह्मा बना दें और ब्रह्मा को मच्छर से भी हीन कर दें ।
                    ‘मेटत कठिन कुअंक भाल के ।।’  
भाल के जो कठिन कुअंक है , वह भगवान की कृपा हो तो मिट जायं |

गरल सुधा रिपु करहिं मिताई । गोपद सिंधु अनल सितलाई ।।
                                        (रा० च० मा० ५|५|२|)
उनकी कृपा से उल्टा काम हो जाय । वह तो कर्तुम अकर्तुम अन्यथाकर्तुम समर्थ हैं। इसीलिए उनका नाम भगवान है , परन्तु हम उनपर छोड तब न । उनपर छोड दें सर्वथा उनपर निर्भर हो जाएँ , सर्वथा मनमें कामादि दोष न रहें ।   

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             कल्याण संख्या – ९ ,२०१२ 
                                                                                                                            
            श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार – भाईजी


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