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दिवाली


                
हमारी धारणा है की साफ़ सजे हुए घर में लक्ष्मीदेवी आती है,बात ठीक है परन्तु लक्ष्मी सदा ठहरती क्यों नहीं ? इसलिए कि हमारी सफाई और सजावट केवल बाहरी होती है और फिर वे ठहरी भी चंचला, उन्हें बांध रखने का कोई साधन हमारे पास नहीं है |
हां, एक उपाय है , जिससे वह सदा ठहर सकती है | केवल ठहर ही नहीं सकती, हमारे मना करने पर भी हमारे पीछे-पीछे डोल सकती है | वह उपाय है उनके पति श्रीनारायणदेव को वश में कर भीतर-से-भीतर के गुप्त मंदिर में बंद कर रखना | फिर तो अपने पतिदेव के चारू चरण-चुम्बन करने के लिए उन्हें नित्य आना ही पड़ेगा | हम द्वार बंद करेंगे तब भी वह आना चाहेंगी,ज़बरदस्ती घर में घुसेंगी | किसी प्रकार भी पिंड नहीं छोड़ेंगी | इतनी माया फैलाएंगी कि जिससे शायद हमे तंग आकर उनके स्वामी से शिकायत करनी पड़ेगी | जब वे कहेंगे तब माया का विस्तार बंद होगा | तब भी देवी जी जायेंगी नहीं, छिप कर रहेगी | पति को छोड़ कर जाये भी कहा ? चंचला तो बहुत है परन्तु है परम पतिव्रता-शिरोमणि ! स्वामी के चरणों में तो अचल हो कर ही रहती है | अवश्य ही फिर ये हमे तंग नहीं करेंगी | श्रीके रूपमें सदा निवास करेंगी |  
अच्छा तो अब इन लक्ष्मी देवी के स्वामी श्री नारायण-देव को वश में करने का क्या उपाय है ? उपाय है किसी नयी वस्तु का संग्रह करना | दिवाली पर लक्ष्मी माता की प्रसन्नता के लिए हम नयी चीजे तो खरीदते है परन्तु खरीदते ऐसी है जो कुछ काल बाद ही पुरानी हो जाती है | श्री नारायण देव ऐसी क्षणभंगुर वस्तुओ से वश में नहीं होते | उनके लिए तो वह अपार्थिव पदार्थ चाहिए जो कभी पुराना न हो,नित्य नूतन ही बना रहे | वह पदार्थ है ‘विशुद्ध और अनन्य प्रेम’ | इस प्रेम से परमात्मा नारायण तुरन्त वश में हो जाते है | जहाँ नारायण वश में होकर पधारे कि फिर हमारे सारे घर में परम प्रकाश आप-से-आप छा जायेगा; क्योकि सम्पूर्ण दिव्यातिदिव्य प्रकाश का अगाध समुंद्र उनके अंदर भरा हुआ है | हम टिमटिमाते  हुए दीपकों की ज्योति के प्रकाश में लक्ष्मी देवी को बुलाते है, बहुत करते है तो आजकल बिजली की रोशनी कर देते है, परन्तु यह प्रकाश कितनी देर का है ? और है भी सूर्य के सामने जुगुनू की तरह दो कौड़ी का | श्री नारायण देव तो प्रकाश के अधिष्ठान है | सूर्य उन्ही से प्रकाश पाते है | चंद्रमा में चांदनी उन्ही से आती है,अग्नि को प्रभा उन्ही से मिलती है | यह बात मैं नहीं कहता, शास्त्र कहते है और भगवन स्वयं अपने मुख से भी पुकार कर कहते है –
 यदादित्यगतं  तेजो जगदासयते अखिलम |
 यचंद्र्म्सी यचाग्रो ततेजो विधी मामकम || (गीता १५\१२)    

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भगवचर्चा, हनुमान प्रसाद पोद्दार, गीता प्रेस गोरखपुर,
कोड ८२०, पेज १६०

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