जीवन में उतारने योग्य भाईजी की अतुल संपत्ति — १.सबमें भगवान् को देखना २.भगवत्कृपा पर अटूट विश्वास ३.भगवन्नाम का अनन्य आश्रय | भगवान् में विश्वास करनेवाले सच्चे वे ही हैं,जिनका विश्वास विपत्तिकी अवस्थामें भी नहीं हिलता। जो सम्पत्तिमें भगत्कृपा मानते हैं और विपत्तिमें नहीं, वे सच्चे विश्वासी नहीं हैं। भगवान् की रुचिके सामने अपनी रुचि रखनेसे कोई लाभ नहीं होता। उनकी रुचि ही कल्याणमयी है। उनकी रुचिके लिये सदा अपनी रुचिका त्याग कर देना चाहिये। कामनाओंकी पूर्ति कामनाओंके विस्तारका हेतु होती है। सच्चा आनन्द कामनाकी पूर्तिमें नहीं कामनापर विजय प्राप्त करनेमें है। विषय-चिन्तन, विषयासक्ति, विषयकामना,विषय-भोग सभी महान् दुःख उत्पन्न करनेवाले हैं और नरकाग्निमें जलानेके हेतु हैं। भजन मन, वचन और तन—तीनोंसे ही करना चाहिये। भगवान् का चिन्तन मनका भजन है, नाम-गुण-गान वचनका भजन है और भगवद्भावसे की हुई जीवसेवा तनका भजन है। भगवान् की कृपा सभीपर है, परंतु उस कृपाके तबतक दर्शन नहीं होते, जबतक मनुष्य उसपर विश्वास नहीं करता और भगवत्कृपाके सामने लौकिक-पारलौकिक सारे भोगों और साधनोंको तुच्छ नहीं समझ लेता। तन-मनसे भजन न बन पड़े तो केवल वचनसे ही भजन करना चाहिये। भजनमें स्वयं ऐसी शक्ति है कि जिसके प्रतापसे आगे चलकर अपने-आप ही सब कुछ भजनमय हो जाता है।
ॐ कलीं श्रीराधाकृष्णाभ्यां नम:

गुरुवार, नवंबर 15, 2012

सभी क्षेत्रों में आदर्श पुरुष हैं

  
    अवश्य ही वर्तमान समय में भी ऐसे बहुत-से सज्जन सभी क्षेत्रों में वर्तमान हैं , जो भारतीय संस्कृति के परमोज्जवल प्रकाशरूप हैं l  पर ऐसे सज्जन न तो अपना विज्ञापन करते हैं, न वे यह चाहते ही हैं कि उन्हें लोग जानें-मानें l करोड़ों मानवों में, पता नहीं, कितने ऐसे होंगे, जिनके चरित्र अत्यन्त पवित्र  और आदर्श हैं l  जिन क्षेत्रों के लोगों के सम्बन्ध में आपने पूछा है, उन क्षेत्रों में भी ऐसे बहुत-से सजन्नों से मेरा काम पड़ा है और मैं उन्हें जानता हूँ , जो परम आदर्श चरित्र  हैं l
      साधुओं में मैं ऐसे महात्माओं को जानता हूँ, जो सचमुच बड़े विरक्त और परम त्यागी, सदाचारी हैं l  उनमें कौन ब्रह्मनिष्ठ हैं  - परमात्मा को प्राप्त हैं, यह तो मैं नहीं कह सकता, क्योंकि यह स्थिति तो स्वयं संवेद्य है l एक महात्मा को मैंने देखा है, जो बहुत बड़े दार्शनिक विद्वान हैं, पर जिनमें विद्या का जरा भी अभिमान नहीं और जिनका अत्यन्त त्यांगपूर्ण, विरक्त जीवन है l
      धनियों में भी ऐसे बहुत-से हैं l  एक ऐसे सज्जन हैं, जो अपने लिए कंजूस हैं और दूसरों के लिए बड़े उदार हैं, सदाचारी हैं,  व्यसन रहित तथा अभिमान शून्य हैं l  अत्यन्त साधारण रहन-सहन रखते हैं l  विनम्र हैं, भगवद्भक्त  हैं l  एक दुसरे धनि सदाचारी महापुरुष हैं, जिन्होंने पैसा कमाया ही धर्म तथा जनता कि सेवा के लिए l  वे उम्रभर सेवा ही करते रहे l
      एक डिप्टी कलक्टर हैं, जो अनुचित अर्थ ग्रहण नहीं करते, अपने नियमित नौकरी के पैसों से परिवार-पालन करते हैं l  एक दिन मैंने पूछा - उस दिन महीने के अन्त की तारीख थी l  उन्होंने कहा - 'मेरे पास आज चार आने पैसे हैं l  इस महीने के वेतन के पैसे मिलेंगे तो काम चलेगा l '  उनके पास केवल एक पोशाक है, जिसे वे जब बाहर जाते हैं तब पहन लेते हैं, बड़े मितव्ययी हैं और अपनी इस स्थिति में संतुष्ट हैं l
     एक टेक्सटाइल विभाग के उच्च अधिकारी थे, अब उन्होंने अवकाश ग्रहण का लिया है l  बड़े-बड़े प्रलोभन आने पर भी उन्होंने ऊपर का एक पैसा नहीं लिया, बड़ी सादगी से जीवन बिताया l  साईकल से आफिस आते-जाते थे l आफिस के ऊपर-नीचे के अधिकारी उनसे उतने प्रसन्न नहीं रहते थे, क्योंकि वे उनको अपनी अनुचित आय में बाधक समझते थे l  वे बड़े निर्मल-ह्रदय, विनम्र, सदाचारी तथा भक्त पुरुष हैं l

सुख-शान्ति का मार्ग[३३३]