जीवन में उतारने योग्य भाईजी की अतुल संपत्ति — १.सबमें भगवान् को देखना २.भगवत्कृपा पर अटूट विश्वास ३.भगवन्नाम का अनन्य आश्रय | भगवान् में विश्वास करनेवाले सच्चे वे ही हैं,जिनका विश्वास विपत्तिकी अवस्थामें भी नहीं हिलता। जो सम्पत्तिमें भगत्कृपा मानते हैं और विपत्तिमें नहीं, वे सच्चे विश्वासी नहीं हैं। भगवान् की रुचिके सामने अपनी रुचि रखनेसे कोई लाभ नहीं होता। उनकी रुचि ही कल्याणमयी है। उनकी रुचिके लिये सदा अपनी रुचिका त्याग कर देना चाहिये। कामनाओंकी पूर्ति कामनाओंके विस्तारका हेतु होती है। सच्चा आनन्द कामनाकी पूर्तिमें नहीं कामनापर विजय प्राप्त करनेमें है। विषय-चिन्तन, विषयासक्ति, विषयकामना,विषय-भोग सभी महान् दुःख उत्पन्न करनेवाले हैं और नरकाग्निमें जलानेके हेतु हैं। भजन मन, वचन और तन—तीनोंसे ही करना चाहिये। भगवान् का चिन्तन मनका भजन है, नाम-गुण-गान वचनका भजन है और भगवद्भावसे की हुई जीवसेवा तनका भजन है। भगवान् की कृपा सभीपर है, परंतु उस कृपाके तबतक दर्शन नहीं होते, जबतक मनुष्य उसपर विश्वास नहीं करता और भगवत्कृपाके सामने लौकिक-पारलौकिक सारे भोगों और साधनोंको तुच्छ नहीं समझ लेता। तन-मनसे भजन न बन पड़े तो केवल वचनसे ही भजन करना चाहिये। भजनमें स्वयं ऐसी शक्ति है कि जिसके प्रतापसे आगे चलकर अपने-आप ही सब कुछ भजनमय हो जाता है।
ॐ कलीं श्रीराधाकृष्णाभ्यां नम:

शनिवार, जनवरी 26, 2013

सद्गुरु -1-


|| श्री हरि: ||

आज की शुभ तिथि – पंचांग

माघ  शुक्ल, चतुर्दशी, शनिवार, वि० स० २०६९


गुरुर्ब्रह्मा गुरुविष्णु: गुरुर्देवो महेश्वरः |

गुरु: साक्षातपरम्  ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः ||


भारतीय साधना में गुरु-शरणागति सर्वप्रथम हैं | सद्गुरु की कृपा बिना साधना का यथार्थ रहस्य समझ में नहीं आ सकता |केवल शास्त्रों और तर्कों से लक्ष्य तक नहीं पंहुचा जा सकता | अनुभवी सद्गुरु साधनपथ के अन्तराय, उससे बचने के उपाय और साधन मार्ग का उपादेय पाथेय बतलाकर शिष्य को लक्ष्य तक अनायास ही पहुँचा देते है | इसलिये श्रुतियो से लेकर वर्तमान समय के संतो की वाणी तक सभी में एक स्वर से सद्गुरु की शरण में उपस्थित होकर अपने अधिकार के अनुसार उनसे उपदेश प्राप्त कर तदनुकूल आचरण करने का आदेश दिया है | सभी संतो ने मुक्तकंठ से गुरु महिमा का गान किया है | यहाँ तक की गुरु और गोविन्द  दोनों के एक साथ मिलने पर पहले गुरु को ही प्रणाम करने की विधि बतलाई गयी है; क्योकि गुरु कृपा से ही गोविन्द के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होता है | गुरु की महिमा अवर्णनीय है | वे पुरुष धन्य हैं - बड़े ही सौभाग्यवान है जिन्हें सद्गुरु मिले और जिन्होंने अपना जीवन उनके आज्ञा पालन के लिए सहर्ष उत्सर्ग कर दिया |

वास्तव में यथार्थ पारमार्थिक साधन सद्गुरु की सन्निधि में ही संभव हैं | कृपालु गुरु के कर्णधार हुए बिना साधन-तरणी का विषय-समुद्र की नभोव्यापिनी उत्ताल-तरंगो से बच कर उस पार तक पहुच जाना नितान्त असम्भव है | इसलिये प्रत्येक साधक को सद्गुरु की खोज करनी चाहिये और ईश्वर से आर्तभाव से प्रार्थना करनी चाहिये की जिसमे इश्वरानुग्रह से सद्गुरु की प्राप्ति हो जाये; क्योकि वास्तविक संत-महात्मा भगवत्कृपा से ही प्राप्त होते है |

शेष अगले ब्लॉग में ...

नारायण नारायण नारायण.. नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण नारायण....

नित्यलीलालीन श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार, भगवत्चर्चा, पुस्तक कोड  ८२० गीताप्रेस, गोरखपुर