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सद्गुरु -6-


|| श्री हरी ||

आज की शुभ तिथि – पंचांग

माघ कृष्ण,पन्चमी,गुरुवार, वि० स० २०६९

January 31, 2013, Friday

 

सद्गुरु शिष्य के द्वारा यदि कोई पूजन चाहता है तो वह यही चाहता है | इसके विपरीत शिष्य की आत्मिक उन्नति का कुछ भी ख्याल न रख जो मान,बड़ाई के भूखे रहते है, केवल अपने पैर पुजवाने, आरती उतरवाने में जिसको प्रसन्नता होती है,वे कदापि सद्गुरु नही है | विशेषकर जो गुरु के आसन पर बैठ कर धन और स्त्री की इच्छा करते है उनसे तो बहुत ही सावधान रहना चाहिये |

भागवत में कहा है की सत्पुरुष धन और स्त्रियो के संगियो का संग भी दूर से त्याग दे | इसके विपरीत, जो अपने को सत्पुरुष मानते है और कहलाते हुए भी कामिनी-कान्न्चन में आसक्त रहते है, उनको साधु मानना बहुत ही जोखिम का काम है | कुछ वर्ष पूर्व गोरखपुर में एक विद्वान सन्यासी आये थे, वे आठ साल से सदगुरु की खोज में थे | खेद की बात है भाग्यवश उन्हें आरम्भ में ही बहुत कटु अनुभव हो गए, जिससे वे उस समय भी शंकाशील बनगए थे  और ‘दूध का जला छाछ का भी फूकं-फूँक कर  पीता है’ इस कहावत के अनुसार वे हर जगह केवल संदेह करते  और श्रधा छोड़ कर केवल परीक्षा के लिए जाते थे जिससे उनको यथार्थ का मिलना एक प्रकार से कठिन सा हो गया था, यहाँ तक की दैवी सम्पति के गुणों को भी वे कुछ-कुछ अव्यवहारिक मानने लगे थे | तथापि वे यथार्थ में बहुत ही सच्चे, सद्गुणी साधु प्रतीत होते थे |
 

शेष अगले ब्लॉग में ...

नारायण नारायण नारायण.. नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण नारायण....

 
नित्यलीलालीन श्रधेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार, भगवत्चर्चा, पुस्तक कोड  ८२० गीताप्रेस, गोरखपुर

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