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उन्नति का स्वरुप -3-


|| श्रीहरिः ||
                            आज की शुभतिथि-पंचांग
                 माघ शुक्ल चतुर्दशी, रविवार, वि० स० २०६९
                                         
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एक मनुष्य बड़ा ईश्वरभक्त या देश भक्त कहलाता है, स्थान-स्थान में उपदेश देता फिरता है, आचार्य या नेताकी हैसीयत से सर्वत्र पूजा जाता है, जगह-जगह मान या मानपत्र प्राप्त करता है, हजारों-लाखों नर-नारी उसके दर्शन करने और भाषण सुनने को लालायित रहते है, पर यह सब कुछ वह राग-द्वेष से प्रेरित मान प्राप्त करने या धन कमाने के लिए कर रहा है | अपनी भडकीली वक्तृताओ से अल्पबुद्धि और अनुभवरहित लोगो को उतेजित और पथभ्रष्ट कर उनको इस लोक और परलोक में दु:खी बना देता है | दूसरी और एक सीधा-सादा ईश्वरभक्त व्यक्ति है, जिसको कोई पूछता-जानता भी नहीं, जो चुप-चाप अपने भगवान के सामने रोता है | जो अपने सामर्थ्यानुसार चुपचाप शरीर, मन, वाणी से, रोटीके एक सूखे टुकड़ेसे, चूलू भर पानीसे, बीमारी की हालत में सेवा से, सद्-व्यवहारसे और सच्चे सन्मार्गकी शिक्षा से जनता की सेवा करता है या एकान्त में बैठ कर, जनता की आँखों से ओझल होकर चुपचाप भगवद्भजन ही करता है | बतलाइये इन दोनों में कौन उन्नत है ?

एक तंदरुस्त आदमी रोज अखाड़े में जाकर कुश्ती लड़ता है | बात-की-बात में चाहे जिसे पछाड़ देता है, इसलिए बल संग्रह करता है की वह राग-द्वेष वश जिनको अपना शत्रु समझता है, उन्हें पछाड़ सके | अपने शरीर-बल के अभिमान से किसी को कुछ समझता ही नहीं, शक्ति के बलपर दूसरो के मन में भय उत्पन्न करने और भोग-भोगने में ही लगा रहता है | दूसरी और एक कोढ़ी मनुष्य है, शरीर अत्यन्त अशक्त हो रहा है, लोग उससे घृणा करते हैं, परन्तु उसका अन्त:करण प्रेम से पूर्ण है, वह सदा सर्वदा सबका हित चाहता है, किसी से द्वेष नहीं करता, जो कुछ मिल जाता है, उसे ही खाकर एक कोने में पड़ा ईश्वर का स्मरण करता रहता है | बतलाइये, इन दोनों में आप किसको उन्नति के पथ पर आरूढ़ समझते है ? ....शेष अगले ब्लॉग में

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!

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