किसी
बहन पर अगर विपति आ गयी--उसके पतिका देहान्त हो गया।सास कह देती है, घरके
लोग कह देते हैं कि यह हमारे घरमें ऐसी कुलक्षिंणी आयी कि पतिको खा गयी।
कितना बड़ा अपराध है यह । वह बेचारी खुद इस समय कितनी संत्रस्त है, कितनी
दु:खी है और उसके घावपर और घाव लगा देना। यह कितना बड़ा महापाप है? यह
देखनेकी चीज है पर हम देखते कहाँ हैं? हम अपने सुख के सामने उसके दु:ख को
भूल जाते हैं।(मेरी अतुल सम्पति)
त्याग ही प्रेमकी बीज है। त्यागकी सुधाधाराके सिञ्चनसे ही प्रेमबेलि अंकुरित और पल्लवित होती है। जबतक हमारा हृदय तुच्छ स्वार्थोंसे भरा है तबतक प्रेमकी बातें करना हास्यास्पद व्यापारके सिवा और कुछ भी नहीं है। (तुलसी-दल)
जितने भी भगवत्प्राप्त महापुरुष हुए हैं, उन सबकी स्थितियाँ पृथक्-पृथक् हैं; पर तत्त्वतः सभीने एक ही सत्यको प्राप्त किया है! साधानकालमें मार्गकी भिन्नता रहती है --- जैसे किसीमें ज्ञान प्रधान होता है, किसीमें भक्ति, किसीमें निष्काम कर्म तथा किसीमें योग-साधन! पर सबका प्राप्तव्य एक ही भगवान् है! अतएव महापुरुष सभी साधनोंका आदर करते हैं; पर जिस साधनद्वारा वे वहाँतक पहूँचे हैं, उसीका वे विशेषरूपमें समर्थन करते हैं, कारण उस साधनका उन्हें व्यवहारिक ज्ञान अधिक है!
विवाद छोड़कर विचार करो । प्रमाद त्यागकर भजन करो । याद रखो - भगवान् का भजन ऐसा कुशल पथ-प्रदर्शक है, जो तुम्हें सदा यथार्थ मार्ग दिखलाता रहेगा । तुम कभी मार्ग भूल नहीं सकोगे ।
पुस्तक 'भगवान् की पूजा के पुष्प' से पृष्ट २७
मेरे एक मित्र मुझसे कहा करते है कि जब हम निर्धन थे, तब यह इच्छा होती थी कि बीस हजार रुपये हमारे पास हो जायेंगे तो हम केवल भगवान् का भजन ही करेंगे । परन्तु इस समय हमारे पास लाखों रुपये हैं, वृद्धावस्था हो चली है, परन्तु धन कि तृष्णा किसी-न-किसी रूपमें बनी ही रहती है । यही तो तृष्णा का स्वरुप है ।
त्याग ही प्रेमकी बीज है। त्यागकी सुधाधाराके सिञ्चनसे ही प्रेमबेलि अंकुरित और पल्लवित होती है। जबतक हमारा हृदय तुच्छ स्वार्थोंसे भरा है तबतक प्रेमकी बातें करना हास्यास्पद व्यापारके सिवा और कुछ भी नहीं है। (तुलसी-दल)
जितने भी भगवत्प्राप्त महापुरुष हुए हैं, उन सबकी स्थितियाँ पृथक्-पृथक् हैं; पर तत्त्वतः सभीने एक ही सत्यको प्राप्त किया है! साधानकालमें मार्गकी भिन्नता रहती है --- जैसे किसीमें ज्ञान प्रधान होता है, किसीमें भक्ति, किसीमें निष्काम कर्म तथा किसीमें योग-साधन! पर सबका प्राप्तव्य एक ही भगवान् है! अतएव महापुरुष सभी साधनोंका आदर करते हैं; पर जिस साधनद्वारा वे वहाँतक पहूँचे हैं, उसीका वे विशेषरूपमें समर्थन करते हैं, कारण उस साधनका उन्हें व्यवहारिक ज्ञान अधिक है!
विवाद छोड़कर विचार करो । प्रमाद त्यागकर भजन करो । याद रखो - भगवान् का भजन ऐसा कुशल पथ-प्रदर्शक है, जो तुम्हें सदा यथार्थ मार्ग दिखलाता रहेगा । तुम कभी मार्ग भूल नहीं सकोगे ।
पुस्तक 'भगवान् की पूजा के पुष्प' से पृष्ट २७
मेरे एक मित्र मुझसे कहा करते है कि जब हम निर्धन थे, तब यह इच्छा होती थी कि बीस हजार रुपये हमारे पास हो जायेंगे तो हम केवल भगवान् का भजन ही करेंगे । परन्तु इस समय हमारे पास लाखों रुपये हैं, वृद्धावस्था हो चली है, परन्तु धन कि तृष्णा किसी-न-किसी रूपमें बनी ही रहती है । यही तो तृष्णा का स्वरुप है ।
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