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भगवती शक्ति -6-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

आश्विन कृष्ण, षष्ठी श्राद्ध, बुधवार, वि० स० २०७०

शक्ति और शक्तिमान

 

गत ब्लॉग से आगे....कोई-कोई कहते है की शुद्ध ब्रह्ममें मायाशक्ति नही रह सकती, माया रही तो वह शुद्ध कैसे ? बात समझने की है | शक्ति कभी शक्तिमान से पृथक नहीं रह सकती | यदि शक्ति नहीं है तो उसका उसका शक्तिमान नाम नहीं हो सकता और शक्तिमान न हो तो शक्ति रहे कहाँ ? अतएव शक्ति सदा ही शक्तिमान में रहती है | शक्ति नहीं होती तो सृष्टि के समय शुद्ध ब्रह्म में एक से अनेक होने का संकल्प कहाँ से और कैसे आता है ? इस पर यदि यह कहा जाये की ‘जिस समय संकल्प हुआ, उस समय शक्ति आ गयी,पहले नहीं थी |’ अच्छी बात है ; पर बताओ, वह शक्ति कहाँ से आई ? ब्रह्म के सिवा कहाँ जगह थी जहाँ वह अभ तक छिपी बैठी थी ? इसका क्या उत्तर ?’ ‘अजी, ब्रह्म में कभी संकल्प ही नहीं हुआ, यह सब असत कल्पनाएँ है, मिथ्या स्वप्न-की सी बाते है |’ ‘अच्छी बात है, पर यह मिथ्या स्वप्न की सी बाते है |’ ‘अच्छी बात है, पर मिथ्या कल्पनाये किसने किस शक्ति से की और मिथ्या स्वप्न को किसने किस सामर्थ्य से देखा ? और मान भी लिया जाए की यह सब मिथ्या है तो इतना तो मन्ना ही पड़ेगा की शुद्ध ब्रह्म का अस्तित्व किससे है ? जिससे वह अस्तित्व है वही उसकी शक्ति है | क्या जीवनीशक्ति बिना भी कोई जीवित रह सकता है ?  अवश्य ही ब्रह्म की वह जीवनी-शक्ति  ब्रह्म से भिन्न नहीं है | वही जीवनीशक्ति अन्यान्य समस्त  शक्तिओं की जननी है, वही परमात्मरूपा महाशक्ति है | अन्यान्य सारी  शक्तियाँ अव्यक्तरूप से उन्ही में छिपी रहती है और जब वे चाहती है तब उनको प्रगट करके काम लेती है | हनुमान में समुद्र लाघने की शक्ति थी, पर वह अव्यक्त थी, जाम्भ्वान के याद दिलाते ही हनुमान ने उसे व्यक्त रूप दे दिया | इसी प्रकार सर्शक्तिमान परमात्मा या परमा शक्ति भी नित्य शक्तिमान है; हाँ, कभी वह शक्ति उनमे अव्यक्त रहती है और कभी व्यक्त | अवश्य ही भगवान की शक्ति को व्यक्त रूप भगवान स्वयं ही देते है, यहाँ किसी जाम्बवान की आवस्यकता नहीं होती | परन्तु शक्ति नहीं है , ऐसा नहीं कहा जा सकता | इसीसे ऋषि-मुनियों ने इस शक्तिमान को महाशक्ति के रूप में देखा |... शेष अगले ब्लॉग में....       

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!

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