जीवन में उतारने योग्य भाईजी की अतुल संपत्ति — १.सबमें भगवान् को देखना २.भगवत्कृपा पर अटूट विश्वास ३.भगवन्नाम का अनन्य आश्रय | भगवान् में विश्वास करनेवाले सच्चे वे ही हैं,जिनका विश्वास विपत्तिकी अवस्थामें भी नहीं हिलता। जो सम्पत्तिमें भगत्कृपा मानते हैं और विपत्तिमें नहीं, वे सच्चे विश्वासी नहीं हैं। भगवान् की रुचिके सामने अपनी रुचि रखनेसे कोई लाभ नहीं होता। उनकी रुचि ही कल्याणमयी है। उनकी रुचिके लिये सदा अपनी रुचिका त्याग कर देना चाहिये। कामनाओंकी पूर्ति कामनाओंके विस्तारका हेतु होती है। सच्चा आनन्द कामनाकी पूर्तिमें नहीं कामनापर विजय प्राप्त करनेमें है। विषय-चिन्तन, विषयासक्ति, विषयकामना,विषय-भोग सभी महान् दुःख उत्पन्न करनेवाले हैं और नरकाग्निमें जलानेके हेतु हैं। भजन मन, वचन और तन—तीनोंसे ही करना चाहिये। भगवान् का चिन्तन मनका भजन है, नाम-गुण-गान वचनका भजन है और भगवद्भावसे की हुई जीवसेवा तनका भजन है। भगवान् की कृपा सभीपर है, परंतु उस कृपाके तबतक दर्शन नहीं होते, जबतक मनुष्य उसपर विश्वास नहीं करता और भगवत्कृपाके सामने लौकिक-पारलौकिक सारे भोगों और साधनोंको तुच्छ नहीं समझ लेता। तन-मनसे भजन न बन पड़े तो केवल वचनसे ही भजन करना चाहिये। भजनमें स्वयं ऐसी शक्ति है कि जिसके प्रतापसे आगे चलकर अपने-आप ही सब कुछ भजनमय हो जाता है।
ॐ कलीं श्रीराधाकृष्णाभ्यां नम:

शुक्रवार, सितंबर 27, 2013

भगवती शक्ति -8-


|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
आश्विन कृष्ण, अष्टमी  श्राद्ध, शुक्रवार , वि० स० २०७०
शक्ति की महिमा
 
गत ब्लॉग से आगे....यही शूरो का बल है, दानियों की उदारता, माता पिता का वात्सल्य, गुरु की गुरुता, पुत्र और शिष्य की गुरुजन भक्ति, साधुओं की साधुता, चतुरों की चातुरी और मायाविओं की माया है | यही लेखको की लेखनी शक्ति, वाग्मियों की वक्त्रत्वशक्ति, न्यायी नरेशों की प्रजा पालन शक्ति और प्रजा की राजभक्ति है | यह सदाचारियों की दैवी-सम्पति, मुमुक्षुओ की ष्ठशक्ति है, धनवानों की अर्थसम्पति और विद्वानों की विद्यासम्पति है | यही ज्ञानियों की ज्ञानशक्ति, प्रेमियों की प्रेमशक्ति, वैराग्यवानो  की वैराग्यशक्ति और भक्तों की भक्तिशक्ति है | यही राजाओं की राजलक्ष्मी, वणिको की सोभाग्यलक्ष्मी, सज्जनों की शोभालक्ष्मी, और श्रेयार्थियों  की श्री है | यही पतिओं की पत्नीप्रीती और पत्नी की पतिव्रताशक्ति है |
सारांश यह है की जगत में तमाम जगह परमात्मरूपा महाशक्ति ही विविध रूपों में खेल रही है | सभी जगह स्वाभिक ही शक्ति की पूजा हो रही है | जहाँ शक्ति नहीं है वाही शून्यता है | शक्तिहीन की कही कोई पूछ नहीं है | प्रहलाद-ध्रुव भक्ति शक्ति के कारण पूजित है | गोपी प्रेम-शक्ति के कारण जगत पूज्य है | भीष्म-हनुमान की ब्रहचर्य-शक्ति; व्यास-वाल्मीकि की कवित्व शक्ति; भीम-अर्जुन की शौर्यशक्ति, युद्दिस्टर-हरिश्चंद्र की सत्यशक्ति, शंकर-रामानुज की विज्ञानंशक्ति; शिवाजी-प्रताप की वीरशक्ति; इस प्रकार जहाँ देखो वहीँ शक्ति के कारण ही सबकी सोभा और पूजा है | सर्वर्त्र शक्ति का समादर ही बोलबाला है | शक्तिहीन वस्तु जगत में टिक ही नहीं सकती | सारा जगत अनादिकाल से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निरंतर केवल शक्ति की उपासना में लगा है और सदा लगा रहेगा |... शेष अगले ब्लॉग में.... 
      
श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
 
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!

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