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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
मार्गशीर्ष कृष्ण, सप्तमी, सोमवार,
वि० स० २०७०
परदोष-दर्शन तथा पर-निंदासे हानि -२-
गत
ब्लॉग से आगे ... याद रखो -जिस मानव जीवनमें मनुष्य सबका हित करके मन-वाणी से सबको सुख पहुंचाकर
भगवानके सन्मार्ग पर चलता है और जगतमें दैवी सम्पदाका विकास करता तथा अन्तमें भजन
में लगकर भगवत-प्राप्ति कर लेता – उस दुर्लभ मानव-जीवन को परदोष-दर्शन तथा
पर-निन्दामें तथा अपनी मिथ्या प्रशंसा में लगाकर अपने जीवन को तथा दूसरोंके जीवनको
भी इस लोक तथा परलोकमें नरक-यंत्रणा-भोगका भागी बना देना – कितना बड़ा प्रमाद और
पाप है ! इससे बड़ी सावधानी के साथ सबको बचना चाहिए ।
याद रखो -मनुष्य का परम कर्तव्य है – भगवानके गुणोंका, उनके नामका, उनकी लीला का
श्रवण, कथन तथा कीर्तन एवं स्मरण करनेमें ही जीवन को लगाना । बुद्धिमान
मनुष्यको तो दूसरोंके न तो गुण-दोषका चिंतन करना चाहिए, न देखना चाहिए और न उनका
वर्णन ही करना चाहिए ।
उसे तो भगवद-गुण चिंतनसे ही समय नहीं मिलना चाहिए । पर यदि देखे बिना
न रहा जाए तो दूसरोंके गुण देखने चाहिए और ढूँढ-ढूँढकर अपने दोष देखने चाहिए । न रहा जाए तो
दूसरों के सच्चे गुणों की प्रशंसा करनी चाहिए और अपने दोषोंकी साहस के साथ निंदा । वास्तव में
परमार्थ की दृष्टि से तो यह सब कुछ न करके भगवत-चिन्तन तथा भगवन्नाम-गुणका
कथन-कीर्तन-चिंतन ही करना चाहिए ।
याद रखो -आज ही यह
प्रतिज्ञा करनी है की मैं अबसे कभी भी न पर-दोष देखूँगा और न किसीकी निंदा-चुगली
ही करूँगा ।
अपना अधिक-से-अधिक मन तथा समय भगवानके नाम-गुण-स्वरुप-चिंतन में ही लगाऊंगा और
उन्हीं का कीर्तन करूँगा ।.... शेष
अगले ब्लॉग में.
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं,
कल्याण कुञ्ज भाग – ७, पुस्तक कोड ३६४, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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