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वशीकरण -७-


।। श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
माघ शुक्ल, चतुर्थी, सोमवार, वि० स० २०७०

                                 वशीकरण  -७-
द्रौपदी-सत्यभामा-संवाद

 

गत ब्लॉग से आगे....हे कल्याणी ! हे यशस्विनी  सत्यभामा ! जब भरतकुल में श्रेष्ठ पाण्डव घर-परिवार का सारा भार मुझ पर छोड़कर उपासना में लगे रहते थे तब मैं सब तरह से आराम को छोड़ कर रात-दिन दुष्टमन की स्त्रियों के न उठा सकने लायक कठिन कार्य के सारे भार को उठाये रखती थी । जिसदिन मेरे पति उपासनादी कार्य में तत्पर रहते उस समय वरुणदेवता के खजाने महासागर के समान असंख्य धन के खजानों की देख-भाल में अकेली ही करती ।
स प्रकार भूख-प्यास भुलाकर लगातार काम में लगी रहने के कारण मुझे रात-दिन की सुधि भी न रहती थी । मैं सबके सोने के बाद सोती और सबके उठने से पहले जाग उठती थी और निरन्तर सत्य-व्यवहार में लगी रहती । यही मेरा वशीकरण है । हे सत्यभामा ! पति को वश में करने का सबसे अच्छा महान वशीकरण मन्त्र मैं जानती हूँ । दुराचारिणी स्त्रियों के दुराचारों को मैं न तो ग्रहण ही करती हूँ और न कभी उसकी मेरी इच्छा ही होती है ।

 द्रौपदी के द्वारा श्रेष्ठ धर्म की बातें सुनकर सत्यभामा बोली-‘हे द्रौपदी ! मैंने तुमसे इस तरह की बाते पूछकर जो अपराध किया है, उसे क्षमा करों । सखियों में परस्परहँसी में स्वाभाविक ही ऐसी बाते निकल जाती है ।’  ...शेष अगले ब्लॉग में ।                                                         
 
 श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!! 

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