।।
श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
माघ शुक्ल, पंचमी, मंगलवार, वि० स० २०७०
वशीकरण -८-
द्रौपदी-सत्यभामा-संवाद
गत ब्लॉग
से आगे....द्रौपदी फिर कहने
लगी-‘हे सखी ! पति का चित खीचने का एक कभी
खाली न जानेवाला एक उपाय बतलाती हूँ । इस उपाय को काम में लाने से तुम्हारे
स्वामी का चित सब तरफ से हटकर केवल तुम्हारे में ही लग जायेगा । हे सत्यभामा ! स्त्रियों के लिए पति ही परम
देवता है, पति के समान और कोई भी देवता नही है । जिसके प्रसन्न होने से स्त्रियों
के सब मनोरथ सफल होते है और जिसके नाराज़ होने से सब सुख नष्ट हो जाते है ।
पति को
प्रसन्न करके ही स्त्री, पुत्र, नाना प्रकार के सुखभोग, उत्तम शय्या, सुन्दर आसन,
वस्त्र, पुष्प, गन्ध, माला, स्वर्ग, पुण्यलोक और महान कीर्ति को प्राप्त करती है ।
सुख सहज में नही मिलता, पतिव्रता स्त्री पहले दुःख झेलती है तब उसे सुख मिलता है ।
अतएवतुम भी प्रतिदिन सच्चे प्रेम से सुंदर वस्त्राभूषण, भोजन, गन्ध, पुष्प आदि
प्रदान कर श्रीकृष्ण की आराधना करों । जब वे यह समझ जायेंगे की मैं सत्यभामा के
लिए परम प्रिय हूँ, तब वे तुम्हारे वश में हो जायेंगे, इसमें कोई सन्देह नही है ।
अतएव तुम मेरे कथनानुसार उनकी सेवा करों ।
तुम्हारा ऐसा सद्वव्यवहार देखकर श्रीकृष्ण समझेंगे की सत्यभामा सचमुच सब
प्रकार से मेरी सेवा करती है । तुम्हारे पति तुमसे जो कुछ कहे वह गुप्त रखने लायक
न तो भी तुम किसी से मत कहों, क्योकि यदि तुमसे तुम्हारी सौत कभी उनसे वह बात कह
देगी तो वह तुमसे नाराज हो जायेंगे । ...शेष अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण
!!! नारायण !!! नारायण !!!
टिप्पणियाँ