जीवन में उतारने योग्य भाईजी की अतुल संपत्ति — १.सबमें भगवान् को देखना २.भगवत्कृपा पर अटूट विश्वास ३.भगवन्नाम का अनन्य आश्रय | भगवान् में विश्वास करनेवाले सच्चे वे ही हैं,जिनका विश्वास विपत्तिकी अवस्थामें भी नहीं हिलता। जो सम्पत्तिमें भगत्कृपा मानते हैं और विपत्तिमें नहीं, वे सच्चे विश्वासी नहीं हैं। भगवान् की रुचिके सामने अपनी रुचि रखनेसे कोई लाभ नहीं होता। उनकी रुचि ही कल्याणमयी है। उनकी रुचिके लिये सदा अपनी रुचिका त्याग कर देना चाहिये। कामनाओंकी पूर्ति कामनाओंके विस्तारका हेतु होती है। सच्चा आनन्द कामनाकी पूर्तिमें नहीं कामनापर विजय प्राप्त करनेमें है। विषय-चिन्तन, विषयासक्ति, विषयकामना,विषय-भोग सभी महान् दुःख उत्पन्न करनेवाले हैं और नरकाग्निमें जलानेके हेतु हैं। भजन मन, वचन और तन—तीनोंसे ही करना चाहिये। भगवान् का चिन्तन मनका भजन है, नाम-गुण-गान वचनका भजन है और भगवद्भावसे की हुई जीवसेवा तनका भजन है। भगवान् की कृपा सभीपर है, परंतु उस कृपाके तबतक दर्शन नहीं होते, जबतक मनुष्य उसपर विश्वास नहीं करता और भगवत्कृपाके सामने लौकिक-पारलौकिक सारे भोगों और साधनोंको तुच्छ नहीं समझ लेता। तन-मनसे भजन न बन पड़े तो केवल वचनसे ही भजन करना चाहिये। भजनमें स्वयं ऐसी शक्ति है कि जिसके प्रतापसे आगे चलकर अपने-आप ही सब कुछ भजनमय हो जाता है।
ॐ कलीं श्रीराधाकृष्णाभ्यां नम:

शुक्रवार, जून 27, 2014

भोगो के आश्रय से दुःख -४-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

आषाढ़ कृष्ण , अमावस्या, शुक्रवार, वि० स० २०७१

 
भोगो के आश्रय से दुःख  -४-

गत ब्लॉग से आगे.......भूल होती है स्वाश्रित । दुसरे के आश्रय पर भूल नही रहती । भूल रहती है अपने आश्रय से । भूल जब समझ में आ गयी तो भूल नही रहती । इसी प्रकार इस जगत का हाल है ।
 
यहाँ पर नित्य नयी समस्याएं, बहुत सी समस्याए जीवन में उठती है और बहुत सी समस्याओं को लोग लेकर मिलते है, पर समस्याओं के सुलझाने का कोई साधन अपने पास तो है नहीं, जब तक वे स्वयं अपनि समस्या को सुलझाने को तैयार न हों । समस्या सुलझ नही सकती, वह तो ली हुई चीज है । बनायीं हुई चीज है, अपनी निर्माण की चीज है और अपने संकल्प से वह विघटित है, उसको पकड़ रखा है, आधार दे रखा है हमने स्वयं ।
 
हम उसको छोड़ दे अभी तो बस अभी शान्ति मिल जाय । हम जो अनेक विषयों, अनेक पदार्थों, अनेक प्राणियों, अनेक परिस्तिथियों का अपने को दास मानते है । अमुक अमुक परिस्थितियों के , प्राणियों के, पदार्थों के, अधिकार में जब तक हम है; तब तक उन प्राणियों पर, पदार्थों पर, परिस्थितियों पर होने वाला परिणाम; उनमे होने वाला परिवर्तन हम अपने में मानेगे और बिना हुए ही दुखी होते रहेंगे । पर जब इनके न होकर हम भगवान् के हो जाय तो दुःख स्वयं विनष्ट हो जायेगा ।.... शेष अगले ब्लॉग में           

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, कल्याण वर्ष ८८, संख्या ६, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!

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