[ १६ ]
राग खमाच—तीन ताल
दयामयि स्वामिनि परम उदार!
पद-किंकरि की किंकरि-किंकरि करौ मोय
स्वीकार॥
दूर करौं निकुंज-मग-कंटक-कुस सब सदा
बुहार।
स्वच्छ करौं तव पगतरि पावन, धूर-धार सब झार॥
देखौं दूरहि तैं तव प्रियतम संग
सुललित बिहार।
नित्य निहारत रहौं, मिलै कछु सेवा की सनकार॥
पद-सेवन कौ बढ़ै चाव नित काल अनंत
अपार।
अर्पित रहै सदा सेवा में अंग-अंग
अनिवार॥
कबहुँ न जगै दूसरी तृस्ना, कबहुँ न अन्य बिचार।
रहै न कितहूँ कछु ‘मेरौपन’, ‘अहंकार’ होय छार॥
होयँ तुम्हारे मन के ही, बस, मेरे सब ब्यौहार।
बनौ रहै नित तुम्हरौ ही सुख मेरौ प्रानाधार॥
[ १७ ]
राग आसावरी—तीन ताल
राधाजू! मोपै
आजु ढरौ।
निज, निज प्रीतम की
पद-रज-रति मोय प्रदान करौ॥
बिषम बिषय-रस की सब आसा-ममता तुरत हरौ।
भुक्ति-मुक्ति की सकल कामना सत्वर नास
करौ॥
निज चाकर-चाकर-चाकर की सेवा-दान करौ।
राखौ सदा निकुंज निभृत में झाड़ूदार बरौ॥
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