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राग भीमपलासी—ताल मूल
करो प्रभु! ऐसी
दृष्टि-प्रदान।
देख सकूँ सर्वत्र तुम्हारी सतत मधुर
मुसकान॥
हो चाहे परिवर्तन कैसा भी—अति क्षुद्र, महान।
सुन्दर-भीषण, लाभ-हानि, सुख-दु:ख, मान-अपमान॥
प्रिय-अप्रिय, स्वस्थता-रुग्णता, जीवन-मरण-विधान।
सभी प्राकृतिक भोगोंमें हो भरे
तुम्हीं भगवान॥
हो न उदय उद्वेग-हर्ष कुछ, कभी दैन्य-अभिमान।
पाता रहूँ तुम्हारा नित संस्पर्श
बिना-उपमान॥
-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार
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