जीवन में उतारने योग्य भाईजी की अतुल संपत्ति — १.सबमें भगवान् को देखना २.भगवत्कृपा पर अटूट विश्वास ३.भगवन्नाम का अनन्य आश्रय | भगवान् में विश्वास करनेवाले सच्चे वे ही हैं,जिनका विश्वास विपत्तिकी अवस्थामें भी नहीं हिलता। जो सम्पत्तिमें भगत्कृपा मानते हैं और विपत्तिमें नहीं, वे सच्चे विश्वासी नहीं हैं। भगवान् की रुचिके सामने अपनी रुचि रखनेसे कोई लाभ नहीं होता। उनकी रुचि ही कल्याणमयी है। उनकी रुचिके लिये सदा अपनी रुचिका त्याग कर देना चाहिये। कामनाओंकी पूर्ति कामनाओंके विस्तारका हेतु होती है। सच्चा आनन्द कामनाकी पूर्तिमें नहीं कामनापर विजय प्राप्त करनेमें है। विषय-चिन्तन, विषयासक्ति, विषयकामना,विषय-भोग सभी महान् दुःख उत्पन्न करनेवाले हैं और नरकाग्निमें जलानेके हेतु हैं। भजन मन, वचन और तन—तीनोंसे ही करना चाहिये। भगवान् का चिन्तन मनका भजन है, नाम-गुण-गान वचनका भजन है और भगवद्भावसे की हुई जीवसेवा तनका भजन है। भगवान् की कृपा सभीपर है, परंतु उस कृपाके तबतक दर्शन नहीं होते, जबतक मनुष्य उसपर विश्वास नहीं करता और भगवत्कृपाके सामने लौकिक-पारलौकिक सारे भोगों और साधनोंको तुच्छ नहीं समझ लेता। तन-मनसे भजन न बन पड़े तो केवल वचनसे ही भजन करना चाहिये। भजनमें स्वयं ऐसी शक्ति है कि जिसके प्रतापसे आगे चलकर अपने-आप ही सब कुछ भजनमय हो जाता है।
ॐ कलीं श्रीराधाकृष्णाभ्यां नम:

सोमवार, जनवरी 15, 2018

पदरत्नाकर

[ ८५ ]
राग खमाचतीन ताल

छुड़ा दो विषयोंका अभिमान।
करके कृपा, कृपामय!   हमको दो यह शुभ वरदान॥
धन-जन-पद-अधिकार-देह सुख-कीरति-पूजन-मान ।
उच्च जाति-कुल, सबको समझें बिजली-चमक समान॥
सबको आदर दें, सब ही का करें सदा सम्मान।
दुखियोंमें, बस, तुम्हें देखकर, करें उन्हें सुख-दान॥
देखें नहीं उच्च महलोंको, नहिं देखें धनवान।
देखें राह पड़े दुखियोंको, अपने ही सम जान॥
आश्रयहीन, अनाथ, अपाहिज, रुग्ण, दीन, अज्ञान।
भूखों-नंगोंके हित कर दें जीवनका बलिदान॥
तप्त आँसुओंको नित पोंछें, निज सुखका कर दान।
कभी न इसका बदला चाहें, करें न कुछ अहसान॥
उनकी चीज उन्हींको दे दें, बनें न बेईमान।
इसे न समझें दान कभी भी, करें न गौरव-मान॥
सबमें तुम, सब ही तुम, सब कुछके स्वामी भगवान।

नित्य करें निश्चय अनुभव यह, ‘मैं-मेराकर दान॥

-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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रविवार, जनवरी 14, 2018

पदरत्नाकर

[ ८३ ]
राग ईमनतीन ताल

प्रभु!   तुम अपनौ बिरद सँभारौ।
हौं अति पतित, कुकर्मनिरत, मुख मधु, मन कौ बहु कारौ॥
तृस्ना-बिकल, कृपन, अति पीड़ित, काम-ताप सौं जारौ।
तदपि न छुटत विषय-सुख-आसा, करि प्रयत्न हौं हारौ॥
अब तौ निपट निरासा छाई, रह्यौ न आन सहारौ।
एक भरोसौ तव करुना कौ, मारौ चाहें तारौ॥



-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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शनिवार, जनवरी 13, 2018

पदरत्नाकर

[ ८२ ]
राग विहागतीन ताल

हमें प्रभु!   दो ऐसा वरदान।
तन-मन-धन अर्पण कर सारा, करें सदा गुण-गान॥
कभी न तुमसे कुछ भी चाहें, सुख-सम्पति-सम्मान।
अतुल भोग परलोक-लोकके खींच न पायें ध्यान॥
हानि-लाभ, निन्दा-स्तुति सम हों, मान और अपमान।
सुख-दुख विजय-पराजय सम हों, बन्धन-मोक्ष समान॥
निरखें सदा माधुरी मूरति, निरुपम रसकी खान।
चरण-कमल-मकरन्द-सुधाका करें प्रेमयुत पान॥


-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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शुक्रवार, जनवरी 12, 2018

पदरत्नाकर

[ ८१ ]
राग आसावरीतीन ताल

जला दो उर मेरे विरहानल।
प्रियतम!  बिना तुम्हारे, बीते दुखमय युग-सम मेरा पल-पल॥
भोगासक्ति-कामना-ममता जग-ज्वालाएँ सब जायें जल।
मिट जाये सब दु:खयोनि आद्यन्तवन्त भोगोंका अरि-दल॥
जाग उठे दैवी गुण, हो वैराग्य-राग-रञ्जित अन्तस्तल।

मिलन तुम्हारा हो, मिल जाये मानव-जीवनका यथार्थ फल॥


-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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गुरुवार, जनवरी 11, 2018

पदरत्नाकर

[ ८०]
राग काफीतीन ताल

हौं हरिदास-दास कौ दास।
परम अनुग्रह करि पूरी प्रभु ने मो मन की आस॥
तन-मन, धन-जन, कछु नहिं मो पै, हौं चरननि कौ चेरौ।
बड़भागी को मो सम, पायौ पद-कमलनि महँ डेरौ॥
नहिं कछु साधन कौ बल, हौं तौ दास-दास-पद-धूल।
यहै एक अवलंब, परम बल, यहै सजीवन मूल॥
श्रीहरि के प्रिय दास, जानि मोहि निज दासनि कौ दास।
सब अपराध छमा करि राख्यौ निज चरननि के पास॥


-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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बुधवार, जनवरी 10, 2018

पदरत्नाकर

[ ७९ ]
राग जंगलाताल कहरवा

हे मेरे!  तुम, प्राण-प्राण!  तुम, जीवनके जीवन-आधान।
मैंसे रहित बना दो मुझको, हर लो अहंकार-अभिमान॥
कर दो मुझे अकिंचन पूरा, हर लो सभी लोक-परलोक।
भर जाओ उर अमित ज्योति तुम!  हर लो मिथ्या तम-आलोक॥
नटवर!  नाचो मनमाने तुम, मुझे नचाओ मन-अनुसार।
कण-कणपर हो प्रकट तुम्हारा क्रियाशील अनुपद अधिकार॥
कठपुतलीकी भाँति सर्वथा सम्मत, नीरव, वाक्य-विहीन।
नाचें सभी अङ्ग-अवयव, हो तव रुचि रम्य रज्जु-आधीन॥


-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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शुक्रवार, जनवरी 05, 2018

पदरत्नाकर

[ ७७ ]
राग भूपालीतीन ताल

मुझे प्रभु!  दो वह सुन्दर स्थान।
जहाँ गा सकूँ सरस तुम्हारा मैं अचिन्त यश-गान॥
जहाँ न हो मानापमानका तनिक भी कहीं भान।
जहाँ न हो स्तुति-निन्दा, प्रिय-अप्रियका तनिक विधान
जहाँ न हो बँटवारेको कुछ धन-धरणी-सामान।
जहाँ न हो नकली पर्दा, जो झूठ दिखावे शान॥
जहाँ सत्य नित रहे प्रकाशित, बिना बाहरी वेष।
जहाँ प्रेमका शुद्ध सुधा-रस बहता रहे अशेष॥
जहाँ सरल शुभकी धारामें सब बह जाय भदेस।
जहाँ भरा हो भगवदीय भावोंसे सारा देश॥


-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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गुरुवार, जनवरी 04, 2018

पदरत्नाकर

[ ७६ ]
राग आसावरीतीन ताल

करौ, प्रभु!   ऐसी कृपा महान।
छाड़ि कपट-छल भजौं निरंतर सरल हृदै तजि मान॥
सत्य, बिरति, बिग्यान, चरन-रति देहु दया करि दान।
जीवन अर्पित होय जथारथ, मिटै मोह-अग्यान
ममता रहै सदा प्रभु-पद महँ, रहै दास-अभिमान।
निज-पर, लाभ-हानिसब महँ रह चित की बृत्ति समान॥
सब महँ लखौं निरंतर तुम कौं, करौं सदा सनमान।
जीवमात्र कौ करौं न कबहूँ अहित और अपमान॥
राग-द्वेष-रहित इंद्रिय-मन सेवा करैं अमान।
परम अकिंचनसदा रहौं मैं तुमहिं परम धन जान॥


-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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बुधवार, जनवरी 03, 2018

पदरत्नाकर

[ ७५ ]
राग बहारतीन ताल

अब मोहि एक भरोसौ तेरौ।
भक्ति-भाव सौं बिरत, कलुष-रत, मोहाबृत, बिषयन कौ चेरौ॥
काम-लोभ-मद-मोह बसत निसिबासर कियें हिये महँ डेरौ।
सिरपर मीच, नीच नहिं चितवत, रहत सदा रोगनि सौं घेरौ॥
परमारथ की बात कहत नित, भोगन सौं अनुराग घनेरौ।
बार-बार अनुभवत-नहीं कोउ तो-सौ हितू, न तो-सौ नेरौ॥
तदपि बिसारि तोहि, हौं पाँवर सुमिरौं कामज सुखहि अनेरौ।
अब तौ, बस, तू ही अवलंबन, तो बिनु और न कोऊ मेरौ॥
निज पन-बिरद बिचारि, दयामय!   कृपा अहैतुक सौं नित प्रेरौ।
तू ही मोहि उबार बिषम भव-सागर सौं करि छोह बडेरौ॥


-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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मंगलवार, जनवरी 02, 2018

पदरत्नाकर

[ ७४ ]
राग भूपालीतीन ताल

कैसैं बिनय सुनावौं, स्वामी! 
छिपी न कछु तुम सौं अंतर की, सब के अंतरजामी॥
सब बिधि हीन, मलिन-मति मोपै परम अनुग्रह कीन्हौ।
निज स्वभावबस मान, बिपुल जस, धन-बैभव बहु दीन्हौ॥
सब लोकनि में साधु कहायौ, भक्तराज पद पायौ।
रह्यौ बासना-बिबस निरंतर नित बिषयन प्रति धायौ॥
कनक-कामिनी-रस-बस निसि-दिन सहज कुमारगगामी।
भूल्यौ परम अनुग्रह प्रभु कौ ऐसौ नौंन-हरामी॥
हौं अति कुटिल, कृतघ्नी, कामी, नरक-कीट, अघ-भार।
निज दिसि देखि, बिरुद लखि, मोहि उबारहु परम उदार॥


-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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सोमवार, जनवरी 01, 2018

पदरत्नाकर

[ ७३ ]
राग पीलूतीन ताल

हमें ऐसा बल दो भगवान!
जिससे कभी समीप न आयें पाप-ताप बलवान॥
पर-सुख-हित-निमित्त निज सुखका हो स्वाभाविक त्याग।
बढ़ते रहें पवित्र भाव, हो प्रभु-पदमें अनुराग॥
भोगोंमें न रहे रञ्चकभर मेरापन अभिमान।
बनी रहे स्मृति सदा तुम्हारी पावन मधुर महान॥
लीला-गुण, शुचि नाम तुम्हारा हों जीवन-आधार।
रोम-रोमसे निकले सदा तुम्हारी जय-जयकार॥

-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार 


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