जीवन में उतारने योग्य भाईजी की अतुल संपत्ति — १.सबमें भगवान् को देखना २.भगवत्कृपा पर अटूट विश्वास ३.भगवन्नाम का अनन्य आश्रय | भगवान् में विश्वास करनेवाले सच्चे वे ही हैं,जिनका विश्वास विपत्तिकी अवस्थामें भी नहीं हिलता। जो सम्पत्तिमें भगत्कृपा मानते हैं और विपत्तिमें नहीं, वे सच्चे विश्वासी नहीं हैं। भगवान् की रुचिके सामने अपनी रुचि रखनेसे कोई लाभ नहीं होता। उनकी रुचि ही कल्याणमयी है। उनकी रुचिके लिये सदा अपनी रुचिका त्याग कर देना चाहिये। कामनाओंकी पूर्ति कामनाओंके विस्तारका हेतु होती है। सच्चा आनन्द कामनाकी पूर्तिमें नहीं कामनापर विजय प्राप्त करनेमें है। विषय-चिन्तन, विषयासक्ति, विषयकामना,विषय-भोग सभी महान् दुःख उत्पन्न करनेवाले हैं और नरकाग्निमें जलानेके हेतु हैं। भजन मन, वचन और तन—तीनोंसे ही करना चाहिये। भगवान् का चिन्तन मनका भजन है, नाम-गुण-गान वचनका भजन है और भगवद्भावसे की हुई जीवसेवा तनका भजन है। भगवान् की कृपा सभीपर है, परंतु उस कृपाके तबतक दर्शन नहीं होते, जबतक मनुष्य उसपर विश्वास नहीं करता और भगवत्कृपाके सामने लौकिक-पारलौकिक सारे भोगों और साधनोंको तुच्छ नहीं समझ लेता। तन-मनसे भजन न बन पड़े तो केवल वचनसे ही भजन करना चाहिये। भजनमें स्वयं ऐसी शक्ति है कि जिसके प्रतापसे आगे चलकर अपने-आप ही सब कुछ भजनमय हो जाता है।
ॐ कलीं श्रीराधाकृष्णाभ्यां नम:

गुरुवार, फ़रवरी 28, 2019

पदरत्नाकर


[ ४३ ]
तर्ज लावनीताल कहरवा

श्रीराधा-माधव!  यह मेरी सुन लो बिनती परम उदार।
मुझे स्थान दो निज चरणोंमें, पावन प्रभु!  कर कृपा अपार॥
भूलूँ सभी जगतको, केवल रहे तुम्हारी प्यारी याद।
सुनूँ जगतकी बात न कुछ भी, सुनूँ तुम्हारे ही संवाद॥
भोगोंकी कुछ सुधि न रहे, देखूँ सर्वत्र तुम्हारा मुख।
मधुर-मधुर मुसकाता, नित उपजाता अमित अलौकिक सुख॥
रहे सदा प्रिय नाम तुम्हारा मधुर दिव्य रसना रसखान।
मनमें बसे तुम्हारी प्यारी मूर्ती मञ्जु सौन्दर्य-निधान॥
तनसे सेवा करूँ तुम्हारी, प्रति इन्द्रियसे अति उल्लास।
साफ करूँ पगरखी-पीकदानी सेवा-निकुञ्जमें खास॥
बनी खवासिन मैं चरणोंकी करूँ सदा सेवा, अति दीन।
रहूँ प्रिया-प्रियतमके नित पद-पद्म-पराग-सुसेवन-लीन॥

बुधवार, फ़रवरी 27, 2019

पदरत्नाकर


[ ४१ ]
दोहा

श्रीराधामाधव जुगल दिब्य रूप-गुन-खान।
अविरत मैं करती रहूँ प्रेम-मगन गुन-गान॥
राधागोबिंद नाम कौ करूँ नित्य उच्चार।
ऊँचे सुर तें मधुर मृदु, बहै दृगन रस-धार॥
करि करुना या अधम पर, करौ मोय स्वीकार।
पर्यौ रहूँ नित चरन-तल, करतौ जै-जैकार॥
मैं नहिं देखूँ और कौं, मोय न देखैं और।
मैं नित देख्यौई करूँ, तुम दोउनि सब ठौर॥

मंगलवार, फ़रवरी 26, 2019

पदरत्नाकर

[ ३९ ]
राग माँड़ताल कहरवा

मोहन-मन-धन-हारिणी, सुखकारिणी अनूप।
भावमयी श्रीराधिका, आनन्दाम्बुधि-रूप॥
आकर्षक ऋषि-मुनि-हृदय अनुपम रूप ललाम।
कृष्णरसार्णव रस-स्वयं लोकोत्तर सुखधाम॥
दीन-हीन मति मलिन मैं असत-पंथ आरूढ़।
दु:खद भोगोंमें सदा अति आसक्त विमूढ़॥
युगल कृपानिधि!  कीजिये मुझपर कृपा उदार।
पद-रज-सेवाका सतत मिले मुझे अधिकार॥

सोमवार, फ़रवरी 25, 2019

पदरत्नाकर


[ ३५ ]
राग माँड़ताल कहरवा

राधा-माधव-जुगल के प्रनमौं पद-जलजात।
बसे रहैं मो मन सदा, रहै हरष उमगात॥
हरौ कुमति सबही तुरत, करौ सुमति कौ दान।
जातें नित लागौ रहै तुव पद-कमलनि ध्यान॥
राधा-माधव!  करौ मोहि निज किंकर स्वीकार।
सब तजि नित सेवा करौं, जानि सार कौ सार॥
राधा-माधव!  जानि मोहि निज जन अति मति-हीन।
सहज कृपा तैं करौ नित निज सेवा में लीन॥
राधा-माधव!  भरौ तुम मेरे जीवन माँझ।
या सुख तैं फूल्यौ फिरौं, भूलि भोर अरु साँझ॥
तन-मन-मति सब में सदा लखौं तिहारौ रूप।
मगन भयौ सेवौं सदा पद-रज परम अनूप॥
राधा-माधव-चरन रति-रस के पारावार।
बूड्यौ, नहिं निकसौं कबहुँ पुनि बाहिर संसार॥

रविवार, फ़रवरी 24, 2019

पदरत्नाकर


[ ३३ ]
राग-पीलूताल कहरवा

राधा-माधव-पद-कमल बंदौं बारंबार।
मिल्यौ अहैतुक कृपा तें यह अवसर सुभ-सार॥
दीन-हीन अति, मलिन-मति, बिषयनि कौ नित दास।
करौं बिनय केहि मुख, अधम मैं, भर मन उल्लास॥
दीनबंधु तुम सहज दोउ, कारन-रहित कृपाल।
आरतिहर अपुनौ बिरुद लखि मोय करौ निहाल॥
हरौ सकल बाधा कठिन, करौ आपुने जोग।
पद-रज-सेवा कौ मिलै, मोय सुखद संजोग॥
प्रेम-भिखारी पर्यौ मैं आय तिहारे द्वार।
करौ दान निज-प्रेम सुचि, बरद जुगल-सरकार॥
श्रीराधामाधव-जुगल हरन सकल दुखभार।
सब मिलि बोलौ प्रेम तें तिन की जै-जैकार॥

शनिवार, फ़रवरी 23, 2019

पदरत्नाकर


[ २९ ]
राग पीलूताल कहरवा

माधव!  नित मोहि दीजियै निज चरननि कौ ध्यान।
सकल ताप हर मधुर सुचि, आत्यंतिक सुख-खान॥
सब तजि सुचि रुचि सौं सदा भजन करौं बसु जाम।
रहौं निरंतर मौन गहि, जपौं मधुरतम नाम॥
मन-इंद्रिय अनुभव करैं नित्य तुम्हारौ स्पर्श।
मिटैं जगत के मान-मद-ममता-हर्ष-अमर्ष॥
रति-मति-गति सब एक तुम, बनैं अनंत-अनन्य।
तुम में भावभरे हृदय जुरि हो जीवन धन्य॥

शुक्रवार, फ़रवरी 22, 2019

पदरत्नाकर


[ २८ ]
राग माँड़ताल कहरवा

सत्-चित्-घन परिपूर्णतम, परम प्रेम-आनन्द।
विश्वेश्वर वसुदेवसुत, नँदनंदन गोविन्द॥
जयति यशोदातनय हरि, देवकि-सुवन ललाम।
राधा-उर-सरसिज-तपन, मधुरत अलि अभिराम॥
वाणी हो गुण-गान-रत, कर्ण श्रवण-गुण-लीन।
मन सुरूप-चिन्तन-निरत, तन सेवा-आधीन॥
पूर्ण समर्पित रहें नित, तन-मन-बुद्धि अनन्य।
सहज सफलता प्राप्तकर, हो मम जीवन धन्य॥

गुरुवार, फ़रवरी 21, 2019

पदरत्नाकर

[ २७ ]
राग भीमपलासीताल कहरवा

हे परिपूर्ण ब्रह्म!  हे परमानन्द!  सनातन!  सर्वाधार! 
हे पुरुषोत्तम!  परमेश्वर!  हे अच्युत!  उपमारहित उदार॥
विश्वनाथ!  हे विश्वम्भर विभु!  हे अज अविनाशी भगवान! 
हे परमात्मा!  सर्वात्मा हे!  पावन स्वयं ज्ञान-विज्ञान॥
हे वसुदेव-देवकी-सुत!  हे कृष्ण!  यशोदा-नँदके लाल! 
हे यदुपति!  व्रजपति!  हे गोपति!  गोवर्धनधर!  हे गोपाल! 
मेरे एकमात्र आश्रय तुम, तुम ही एकमात्र सुखसार।
तुम्हीं एक सर्वस्व, तुम्हीं, बस, हो मेरे जीवन साकार॥
कितने बड़े, उच्च तुम कितने, कितने दुर्लभ, दिव्य, महान।
गले लगाया मुझ नगण्यको, सब भगवत्ता भूल सुजान॥

बुधवार, फ़रवरी 20, 2019

पदरत्नाकर


[ २६ ]
राग कालिंगड़ाताल कहरवा

जयति राधिकाजीवन, राधा-बन्धु, राधिकामय चिद्‍घन।
जय राधाधन, राधिकाङ्ग, जय राधाप्राण, राधिका-मन॥
जय राधा-सहचर, जय राधारमण, राधिका-चित्त-सुचौर।
जय राधिकासक्त-मानस, जय राधा-मानस-मोहन-मौर॥
जय राधा-मानस-पूरक, जय राधिकेश, राधा-आराध्य।
जय राधाऽराधनतत्पर, जय राधा-साधन, राधा-साध्य॥
जय सब गोपी-गोप-गोपबालक-गोधनके प्राणाधार।
जय गोविन्द गोपिकानन्दन पूर्ण सच्चिदानन्द उदार॥

मंगलवार, फ़रवरी 19, 2019

पदरत्नाकर


[ २५ ]
राग भैरवीताल कहरवा

जय वसुदेव-देवकीनन्दन, जयति यशोदा-नँदनन्दन।
जयति असुर-दल-कंदन, जय-जय प्रेमीजन-मानस-चन्दन॥
बाँकी भौंहें, तिरछी चितवन, नलिन-विलोचन रसवर्षी।
बदन मनोहर मदन-दर्प-हर परमहंस-मुनि-मन-कर्षी॥
अरुण अधर धर मुरलि, मधुर मुसकान मञ्जु मृदु सुधिहारी।
भाल तिलक, घुँघराली अलकैं, अलिकुल-मद-मर्दनकारी॥
गुंजाहार, सुशोभित कौस्तुभ, सुरभित सुमनोंकी माला।
रूप-सुधा-मद पी-पी सब सम्मोहित ब्रजजन-ब्रजबाला॥
जय वसुदेव-देवकीनंदन, जयति यशोदा-नँदनन्दन।
जयति असुर-दल कंदन, जय जय प्रेमीजन मानस-चन्दन॥

सोमवार, फ़रवरी 18, 2019

पदरत्नाकर


[ २४ ]
राग भीमपलासीताल कहरवा

राधा-नयन-कटाक्ष-रूप चञ्चल अञ्चलसे नित्य व्यजित
रहते, तो भी बहती जिनके तनसे स्वेदधार अविरत॥
राधा-अङ्ग-कान्ति अति सुन्दर नित्य निकेतन करते वास।
तो भी रहते क्षुब्ध नित्य, मन करता नव-विलास-अभिलाष॥
राधा मृदु मुसकान-रूप नित मधुर सुधा-रस करते पान।
तो भी रहते नित अतृप्त, जो रसमय नित्य स्वयं भगवान॥
राधा-रूप-सुधोदधिमें जो करते नित नव ललित विहार।
तो भी कभी नहीं मन भरता, पल-पल बढ़ती ललक अपार॥
ऐसे जो राधागत-जीवन, राधामय, राधा-आसक्त।
उनके चरण-कमलमें रत नित रहे हुआ मम मन अनुरक्त॥

रविवार, फ़रवरी 17, 2019

पदरत्नाकर


[
२१ ]
राग भीमपलासीतीन ताल

श्रीराधा!  कृष्णप्रिया!  सकल सुमङ्गल-मूल।
सतत नित्य देती रहो पावन निज-पद-धूल॥
मिटें जगतके द्वन्द्व सब, हों विनष्टसब शूल।
इह-पर जीवन रहे नित तव सेवा अनुकूल॥
देवि!  तुम्हारी कृपासे करें कृपा श्रीश्याम।
दोनोंके पदकमलमें उपजे भक्ति ललाम॥
महाभाव, रसराज तुम दोनों करुणाधाम।
निज जन कर, देते रहो निर्मल रस अविराम॥

शनिवार, फ़रवरी 16, 2019

पदरत्नाकर


[ १९ ]
राग वसन्तताल कहरवा

हे राधे!  हे श्याम-प्रियतमे!  हम हैं अतिशय पामर, दीन ।
भोग-रागमय, काम-कलुषमय मन प्रपञ्च-रत, नित्य मलीन ॥
शुचितम, दिव्य तुम्हारा दुर्लभ यह चिन्मय रसमय दरबार ।
ऋषि-मुनि-ज्ञानी-योगीका भी नहीं यहाँ प्रवेश-अधिकार ॥
फिर हम जैसे पामर प्राणी कैसे इसमें करें प्रवेश ।
मनके कुटिल, बनाये सुन्दर ऊपरसे प्रेमीका वेश ॥
पर राधे!  यह सुनो हमारी दैन्यभरी अति करुण पुकार ।
पड़े एक कोनेमें जो हम देख सकें रसमय दरबार ॥
अथवा जूती साफ करें, झाड़ू देंसौंपो यह शुचि काम ।
रजकणके लगते ही होंगे नाश हमारे पाप तमाम ॥
होगा दम्भ दूर, फिर पाकर कृपा तुम्हारीका कण-लेश ।
जिससे हम भी हो जायेंगे रहने लायक तव पद-देश ॥
जैसे-तैसे हैं, पर स्वामिनि!  हैं हम सदा तुम्हारे दास ।
तुम्हीं दया कर दोष हरो, फिर दे दो निज पद-तलमें वास ॥
सहज दयामयि!  दीनवत्सला!  ऐसा करो स्नेहका दान ।
जीवन-मधुप धन्य हो जिससे कर पद-पङ्कज-मधुका पान ॥

शुक्रवार, फ़रवरी 15, 2019

पदरत्नाकर

१८

राग पीलूताल कहरवा

निन्द्य-नीच, पामर परम, इन्द्रिय-सुखके दास।
करते निसि-दिन नरकमय बिषय-समुद्र निवास॥
नरक-कीट ज्यों नरकमें मूढ़ मानता मोद।
भोग-नरकमें पड़े हम त्यों कर रहे विनोद॥
नहीं दिव्य रस कल्पना, नहीं त्याग का भाव।
कुरस, विरस, नित अरसका दुखमय मनमें चाव॥
हे राधे रासेश्वरी!  रसकी पूर्ण निधान।
हे महान महिमामयी!  अमित श्याम-सुख-खान॥
पाप-ताप हारिणि, हरणि सत्वर सभी अनर्थ।
परम दिव्य रसदायिनी पञ्चम शुचि पुरुषार्थ॥
यद्यपि हैं सब भाँति हम अति अयोग्य, अघबुद्धि।
सहज कृपामयि!  कीजिये पामर जनकी शुद्धि॥
अति उदार!  अब दीजिये हमको यह वरदान।
मिले मञ्जरीका हमें दासी-दासी-स्थान॥

गुरुवार, फ़रवरी 14, 2019

पदरत्नाकर

[ ४२ ]
राग जंगलातीन ताल

हे राधा-माधव!  तुम दोनों दो मुझको चरणोंमें स्थान।
दासी मुझे बनाकर रक्खो, सेवाका अवसर दो दान॥
मैं अति मूढ़, चाकरीकी चतुराईका न तनिक-सा ज्ञान।
दीन नवीन सेविकापर दो समुद उँडेल सनेह अमान॥
रजकण सरस चरण-कमलोंका खो देगा सारा अज्ञान।
ज्योतिमयी रसमयी सेविका मैं बन जाऊँगी सज्ञान॥
राधा-सखी-मञ्जरीको रख सम्मुख मैं आदर्श महान।
हो पदानुगत उसके, नित्य करूँगी मैं सेवा सविधान॥
झाड़ू दूँगी मैं निकुञ्जमें, साफ करूँगी पादत्रान।
हौले-हौले हवा करूँगी सुखद व्यजन ले सुरभित आन॥
देखा नित्य करूँगी मैं तुम दोनोंकी मोहनि मुसकान।