[ २५ ]
राग भैरवी—ताल
कहरवा
जय वसुदेव-देवकीनन्दन,
जयति
यशोदा-नँदनन्दन।
जयति असुर-दल-कंदन,
जय-जय
प्रेमीजन-मानस-चन्दन॥
बाँकी भौंहें, तिरछी
चितवन,
नलिन-विलोचन
रसवर्षी।
बदन मनोहर मदन-दर्प-हर
परमहंस-मुनि-मन-कर्षी॥
अरुण अधर धर मुरलि,
मधुर
मुसकान मञ्जु मृदु सुधिहारी।
भाल तिलक, घुँघराली
अलकैं,
अलिकुल-मद-मर्दनकारी॥
गुंजाहार, सुशोभित
कौस्तुभ,
सुरभित
सुमनोंकी माला।
रूप-सुधा-मद पी-पी सब सम्मोहित
ब्रजजन-ब्रजबाला॥
जय वसुदेव-देवकीनंदन,
जयति
यशोदा-नँदनन्दन।
जयति असुर-दल कंदन,
जय
जय प्रेमीजन मानस-चन्दन॥
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