[ २८ ]
राग माँड़—ताल
कहरवा
सत्-चित्-घन परिपूर्णतम,
परम
प्रेम-आनन्द।
विश्वेश्वर वसुदेवसुत,
नँदनंदन
गोविन्द॥
जयति यशोदातनय हरि,
देवकि-सुवन
ललाम।
राधा-उर-सरसिज-तपन,
मधुरत
अलि अभिराम॥
वाणी हो गुण-गान-रत,
कर्ण
श्रवण-गुण-लीन।
मन सुरूप-चिन्तन-निरत,
तन
सेवा-आधीन॥
पूर्ण समर्पित रहें नित,
तन-मन-बुद्धि
अनन्य।
सहज सफलता प्राप्तकर,
हो
मम जीवन धन्य॥
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