[ २९ ]
राग पीलू—ताल
कहरवा
माधव! नित मोहि दीजियै निज चरननि कौ ध्यान।
सकल ताप हर मधुर सुचि,
आत्यंतिक
सुख-खान॥
सब तजि सुचि रुचि सौं सदा भजन करौं
बसु जाम।
रहौं निरंतर मौन गहि,
जपौं
मधुरतम नाम॥
मन-इंद्रिय अनुभव करैं नित्य तुम्हारौ
स्पर्श।
मिटैं जगत के मान-मद-ममता-हर्ष-अमर्ष॥
रति-मति-गति सब एक तुम,
बनैं
अनंत-अनन्य।
तुम में भावभरे हृदय जुरि हो जीवन
धन्य॥
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