[ ३३ ]
राग-पीलू—ताल
कहरवा
राधा-माधव-पद-कमल बंदौं बारंबार।
मिल्यौ अहैतुक कृपा तें यह अवसर
सुभ-सार॥
दीन-हीन अति, मलिन-मति,
बिषयनि
कौ नित दास।
करौं बिनय केहि मुख,
अधम
मैं,
भर
मन उल्लास॥
दीनबंधु तुम सहज दोउ,
कारन-रहित
कृपाल।
आरतिहर अपुनौ बिरुद लखि मोय करौ निहाल॥
हरौ सकल बाधा कठिन,
करौ
आपुने जोग।
पद-रज-सेवा कौ मिलै,
मोय
सुखद संजोग॥
प्रेम-भिखारी पर्यौ मैं आय तिहारे
द्वार।
करौ दान निज-प्रेम सुचि,
बरद
जुगल-सरकार॥
श्रीराधामाधव-जुगल हरन सकल दुखभार।
सब मिलि बोलौ प्रेम तें तिन की
जै-जैकार॥
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