जीवन में उतारने योग्य भाईजी की अतुल संपत्ति — १.सबमें भगवान् को देखना २.भगवत्कृपा पर अटूट विश्वास ३.भगवन्नाम का अनन्य आश्रय | भगवान् में विश्वास करनेवाले सच्चे वे ही हैं,जिनका विश्वास विपत्तिकी अवस्थामें भी नहीं हिलता। जो सम्पत्तिमें भगत्कृपा मानते हैं और विपत्तिमें नहीं, वे सच्चे विश्वासी नहीं हैं। भगवान् की रुचिके सामने अपनी रुचि रखनेसे कोई लाभ नहीं होता। उनकी रुचि ही कल्याणमयी है। उनकी रुचिके लिये सदा अपनी रुचिका त्याग कर देना चाहिये। कामनाओंकी पूर्ति कामनाओंके विस्तारका हेतु होती है। सच्चा आनन्द कामनाकी पूर्तिमें नहीं कामनापर विजय प्राप्त करनेमें है। विषय-चिन्तन, विषयासक्ति, विषयकामना,विषय-भोग सभी महान् दुःख उत्पन्न करनेवाले हैं और नरकाग्निमें जलानेके हेतु हैं। भजन मन, वचन और तन—तीनोंसे ही करना चाहिये। भगवान् का चिन्तन मनका भजन है, नाम-गुण-गान वचनका भजन है और भगवद्भावसे की हुई जीवसेवा तनका भजन है। भगवान् की कृपा सभीपर है, परंतु उस कृपाके तबतक दर्शन नहीं होते, जबतक मनुष्य उसपर विश्वास नहीं करता और भगवत्कृपाके सामने लौकिक-पारलौकिक सारे भोगों और साधनोंको तुच्छ नहीं समझ लेता। तन-मनसे भजन न बन पड़े तो केवल वचनसे ही भजन करना चाहिये। भजनमें स्वयं ऐसी शक्ति है कि जिसके प्रतापसे आगे चलकर अपने-आप ही सब कुछ भजनमय हो जाता है।
ॐ कलीं श्रीराधाकृष्णाभ्यां नम:

सोमवार, अगस्त 19, 2013

भगवान शिव-१६-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

श्रावण शुक्ल, त्रयोदशी, सोमवार, वि० स० २०७०

शिवनिर्माल्य

 

 गत ब्लॉग से आगे......भगवान् शंकर पर चढ़ायी हुई वस्तु ग्रहण करनी चाहिये या नहीं, इस सम्बन्ध में तरह-तरह की बातें कही जाती है | सिद्धान्त यह है की जिन पुरुषों ने शिव-मन्त्र की दीक्षा ली है, उनके लिए तो शिवजी का नैवेद्य-प्रसाद लेने की विधि है, परन्तु जिनके अन्य देवताकी दीक्षा है, उनके लिए निषेध है | शास्त्र में कहा गया है की शिवजी पर जो निर्माल्य या नैवेद्य चढ़ता है, वह चण्डेश्वर का भाग है, उसका ग्रहण किसी को नहीं करना चाहिये (शिवपुराण-विद्येश्वरसहिंता २२|१६) अर्थात ‘जहाँ चण्डका अधिकार है वहाँ मनुष्य को शिवनैवेद्य का भक्षण नहीं करना चाहिये |’ परन्तु वहीँ इसी श्लोक में यह भी कहा है की जिसमे चण्ड का अधिकार नहीं है, उसका भक्तिपूर्वक भक्षण करना चाहिये | शास्त्रों में यह निर्णय किया गया है की भूमि, वस्त्र, भूषण, सोना, चांदी, तांबा आदि को छोड़कर श्रीशिव जी पर चढ़े हुए पुष्प, फल, मिस्ठान, जल इन सबको, जो शिव दीक्षा से रहित है, उसको ग्रहण नहीं करना चाहिये | पर ये भी यदि शालग्रामजी से स्पर्श हो जाय तो ग्रहण के योग्य हो जाता है | इसलिए जहाँ शालग्रामशिला की उत्पत्ति होती है वहाँ उत्पन्न लिंग में, पारे के लिंग में, पाषण, चांदी या सोने से बने हुए लिंग में, स्फटिक या रत्ननिर्मित लिंग में, केसर से बने हुए लिंग में तथा सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकाल, परमेश्वर, केदारनाथ, भीमशंकर, विश्वनाथ, त्रयम्बक, वैधनाथ, नागेश, रामेश्वर और घुस्मेश्वर  - इन बारह ज्योतिर्लिंगों में चढ़ा हुआ शिव-नैवैध ग्रहण करने योग्य होता है |जिनको शैवी दीक्षा नहीं है, वे भी उपर्युक्त लिंगों के नैवैध को ग्रहण कर सकते है, क्योकि इन लिंगों के निर्माल्य में चण्ड का अधिकार नहीं है |

सारांश यह है की जिनको शिवदीक्षा नहीं है, परतु जो शिव जी के भक्त है उनके लिए पार्थिव लिंग को छोड़कर सभी शिवलिंगो पर निवेदित की हुई वस्तुओं को तथा शिवजी की प्रतिमा पर चढ़ाये हुए प्रसाद को ग्रहण करने का अधिकार है | और जो वस्तुए शिवलिंग का स्पर्श नहीं करती अलग रखकर शिवजी को निवेदन की जाती है, वे अत्यन्त पवित्र है, उन्हें भी ग्रहण करने का अधिकार है | शिवजी की पूजा में नारी तथा शुद्र सभी का अधिकार है, उन्हें केवल वैदिक पूजा नहीं करनी चाहिये |   

   श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!    

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