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विषय और भगवान -१-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

श्रावण शुक्ल, चतुर्दशी, मंगलवार, वि० स० २०७०

 

संसार के विषयों में न मालूम कैसी मोहिनी है, देखते और सुनते ही मन ललचाता हैं, उनकी प्राप्ति के लिये अनेक उचित, अनुचित उपाय उपाय किये जाते है, मनुष्य मोहवश मन-ही-मन सोचता है की इनकी प्राप्ति से सुख हो जायेगा, परन्तु उसका विचार कभी सफल होता ही नहीं | कितने ही लोगों के जीवन तो अभीष्ट विषय की प्राप्ति होने के पूर्व ही पूरे हो जाते हैं | सारा जीवन विषय-सुख के लोभ में अनन्त प्रकार की मानसिक और शारीरिक विपतियों को सहन करते करते ही चला जाता है | किसी को कोई मनचाही वस्तु मिलती है, तब एक बार तो उसे कुछ सुख सा प्रतीत होता है, परन्तु दुसरे ही क्षण नयी कामना उत्पन्न होकर उसके चित को हिला देती है और फिर तुरन्त ही वह अशान्त और व्याकुल होकर उसको पूरी करने की चेष्टा में लग जाता है | वह पूरी होती है तो फिर तीसरी उदय हो जाती है | सारांश यह है की कामनाओं का तार कभी टूटता ही नहीं, वह बराबर बढ़ता चला जाता है | इसका कारण यह है कि संसार का कोई भी पदार्थ ऐसा नहीं है, जो पूर्ण और सारे अभावों को सदा-सर्वदा मिटा देने वाला हो | और जब तक अभावों का अनुभव है, तब तक सुख की प्राप्ति असम्भव है | शेष अगले ब्लॉग में....         

   श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!    

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