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श्रीभगवन्नाम-चिन्तन एवं नाम-महिमाके कुछ श्लोक- 5 नामसे प्रारब्धकर्म-नाश

नामसे प्रारब्धकर्म-नाश नात: परं कर्मनिबन्धकृन्तनं मुमुक्षतां तीर्थपदानुकीर्तनात्। न यत् पुनः कर्मसु सज्जते मनो रजस्तमोभ्यां कलिलं ततोऽन्यथा॥ ( श्रीमद्भागवत) ' जो लोग इस संसार-बन्धनसे मुक्त होना चाहते हैं ,  उनके लिय तीर्थपाद भगवान् के  नामसे बढकर और कोई साधन ऐसा नहीं है ,   जो कर्मबन्धनकी जड़ काट सके ;  क्योंकि नामका आश्रय लेनेसे से मनुष्य का मन फिर सकाम कर्मों में आसक्त नहीं होता। भगवन्नामके अतिरिक्त दूसरे किसी प्रायश्चित का आश्रय लेनेपर मन रजोगुण और तमोगुण से ग्रस्त ही रहता है तथा उसके पापोंका भी पूर्णत: नाश नहीं हो पाता। ' यन्नामधेयं म्रियमाण आतुरः पतन् स्मरन् वा विवशो गृणन् पुमान्। विमुक्त कर्मार्गल उत्तमां गति प्राप्नोति यक्ष्यन्ति न तं कलौ जनाः॥ ( श्रीमद्भागवत) ' मरणोन्मुख रोगी तथा गिरता या किसीका स्मरण करता हुआ मनुष्य विवश होकर भी जिन भगवान्  नामका उच्चारण करके कर्मो की साँकल से छुटकारा पा उत्तम गतिको प्राप्त कर लेता है ,  उन्हीं भगवान्  का कलियुग के मनुष्य पूजा नहीं करेंगे (यह कितने कष्टकी बात है)। ' नाम से मुक्ति और परमधामकी प्

भगवान की शरणागति

श्रीभगवन्नाम-चिन्तन एवं नाम-महिमाके कुछ श्लोक- 4

श्रीभगवन्नाम-चिन्तन एवं नाम-महिमाके कुछ श्लोक- 4 सायं प्रातस्तथा कृत्वा देवदेवस्य कीर्तनम्। सर्वपापविनिर्मुक्तः स्वर्गलोके महीयते॥ ' मनुष्य सायं और प्रात:काल देवाधिदेव श्रीहरिका कीर्तन करके सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो स्वर्गलोक में सम्मानित होता है। ' नारायण नरो नराणां प्रसिद्धचौरः कथितः पृथिव्याम्। अनेकजन्मार्जितपापसंचयं हरत्यशेषं श्रुतमात्रएव॥ ( वामनपुराण) ' इस पृथ्वी पर नारायण नामक एक नर (व्यक्ति) प्रसिद्ध चोर बताया गया है ,  जिसका नाम एवं यश कर्ण-कुहरोंमें प्रवेश करते ही मनुष्य की अनेक जन्मोंकी कमाई हुई समस्त पाप राशि को हर लेता है। ' गोविन्देति तथा प्रोक्तं भक्त्या वा भक्तिवर्जितैः । दहते सर्वपापानि  युगान्ताग्निरिवोत्थितः॥ (स्कन्दपुराण) ' मनुष्य भक्ति भाव से या भक्ति रहित होकर यदि गोविन्द-नामका उच्चारण कर ले तो वह नाम सम्पूर्ण पापों को उसी प्रकार दग्ध कर देता है ,  जैसे युगान्तकालमें प्रज्वलित हुई प्रलयाग्नि सारे जगत को जला डालती है। ' गोविन्दनाम्ना यः कश्चिन्नरो भवति भूतले। कीर्तन देव तस्यापि पापं याति सहस्त्रधा॥

श्रीभगवन्नाम-चिन्तन एवं नाम-महिमाके कुछ श्लोक 3

श्रीभगवन्नाम-चिन्तन एवं नाम-महिमाके कुछ श्लोक कलयुगमें नामकी विशेषता ' कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महान् गुण: । कीर्तन देव कृष्णस्य मुक्तसंगः परं व्रजेत्॥ (श्रीमद्भागवत)   ' राजन्! दोषोंके भंडार कलयुग में यही एक महान् गुण है कि इस समय श्रीकृष्णका कीर्तनमात्र करनेसे से मनुष्य की सारी आसक्तियाँ छूट जाती हैं और वह परमपदको प्राप्त हो जाता है। ' यदभ्यर्च्य हरिं भक्त्या कृते क्रतुशतैरपि। फलं प्राप्नोत्यविकलं कलौ गोविन्दकीर्तनात् ॥ (श्री विष्णु रहस्य) ‘सत्ययुगमें भक्ति-भावसे सैकड़ों यज्ञोंद्वारा भी श्रीहरिकी आराधना करके मनुष्य जिस फलको पाता है , वह सारा-का-सारा कलियुगमें भगवान् गोविंद का कीर्तन मात्र करके प्राप्त कर लेता है। ' ध्यायन् कृते यजन् यज्ञैस्त्रेतायां द्वापरेऽर्चयन्। यदाप्नोति तदाप्नोति कलौ संकीर्त्य केशवम्॥ (विष्णु पुराण) ' सत्ययुगमें भगवान का ध्यान , त्रेता यज्ञोंद्वारा यजन और द्वापर में उनका पूजन करके मनुष्य जिस फलको पाता है , उसे वह कलियुगमें केशवका का कीर्तन मात्र करके प्राप्त कर लेता है। कृते यद्ध्यायतो वि