जीवन में उतारने योग्य भाईजी की अतुल संपत्ति — १.सबमें भगवान् को देखना २.भगवत्कृपा पर अटूट विश्वास ३.भगवन्नाम का अनन्य आश्रय | भगवान् में विश्वास करनेवाले सच्चे वे ही हैं,जिनका विश्वास विपत्तिकी अवस्थामें भी नहीं हिलता। जो सम्पत्तिमें भगत्कृपा मानते हैं और विपत्तिमें नहीं, वे सच्चे विश्वासी नहीं हैं। भगवान् की रुचिके सामने अपनी रुचि रखनेसे कोई लाभ नहीं होता। उनकी रुचि ही कल्याणमयी है। उनकी रुचिके लिये सदा अपनी रुचिका त्याग कर देना चाहिये। कामनाओंकी पूर्ति कामनाओंके विस्तारका हेतु होती है। सच्चा आनन्द कामनाकी पूर्तिमें नहीं कामनापर विजय प्राप्त करनेमें है। विषय-चिन्तन, विषयासक्ति, विषयकामना,विषय-भोग सभी महान् दुःख उत्पन्न करनेवाले हैं और नरकाग्निमें जलानेके हेतु हैं। भजन मन, वचन और तन—तीनोंसे ही करना चाहिये। भगवान् का चिन्तन मनका भजन है, नाम-गुण-गान वचनका भजन है और भगवद्भावसे की हुई जीवसेवा तनका भजन है। भगवान् की कृपा सभीपर है, परंतु उस कृपाके तबतक दर्शन नहीं होते, जबतक मनुष्य उसपर विश्वास नहीं करता और भगवत्कृपाके सामने लौकिक-पारलौकिक सारे भोगों और साधनोंको तुच्छ नहीं समझ लेता। तन-मनसे भजन न बन पड़े तो केवल वचनसे ही भजन करना चाहिये। भजनमें स्वयं ऐसी शक्ति है कि जिसके प्रतापसे आगे चलकर अपने-आप ही सब कुछ भजनमय हो जाता है।
ॐ कलीं श्रीराधाकृष्णाभ्यां नम:

शुक्रवार, मार्च 27, 2020

श्रीभगवन्नाम-चिन्तन एवं नाम-महिमाके कुछ श्लोक 3

श्रीभगवन्नाम-चिन्तन एवं नाम-महिमाके कुछ श्लोक

श्रीभगवन्नाम-चिन्तन एवं नाम-महिमाके कुछ श्लोक Hanuman Prasad Poddar Krishan Radhe Naam Jap Kirtan

कलयुगमें नामकी विशेषता


'कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महान् गुण:
कीर्तन देव कृष्णस्य मुक्तसंगः परं व्रजेत्॥
(श्रीमद्भागवत)

 'राजन्! दोषोंके भंडार कलयुग में यही एक महान् गुण है कि इस समय श्रीकृष्णका कीर्तनमात्र करनेसे से मनुष्य की सारी आसक्तियाँ छूट जाती हैं और वह परमपदको प्राप्त हो जाता है।'

यदभ्यर्च्य हरिं भक्त्या कृते क्रतुशतैरपि।
फलं प्राप्नोत्यविकलं कलौ गोविन्दकीर्तनात् ॥
(श्री विष्णु रहस्य)

‘सत्ययुगमें भक्ति-भावसे सैकड़ों यज्ञोंद्वारा भी श्रीहरिकी आराधना करके मनुष्य जिस फलको पाता है, वह सारा-का-सारा कलियुगमें भगवान् गोविंद का कीर्तन मात्र करके प्राप्त कर लेता है।'

ध्यायन् कृते यजन् यज्ञैस्त्रेतायां द्वापरेऽर्चयन्।
यदाप्नोति तदाप्नोति कलौ संकीर्त्य केशवम्॥
(विष्णु पुराण)

'सत्ययुगमें भगवान का ध्यान, त्रेता यज्ञोंद्वारा यजन और द्वापर में उनका पूजन करके मनुष्य जिस फलको पाता है, उसे वह कलियुगमें केशवका का कीर्तन मात्र करके प्राप्त कर लेता है।

कृते यद्ध्यायतो विष्णुं त्रेतायां यजतो मखै:।
द्वापरे परिचर्यायां कलौ तद्धरीकीर्तनात ॥
(श्रीमद्भागवत)

 'सत्ययुगमें भगवान् विष्णु का ध्यान करनेवालेको, को, त्रेता में यज्ञों द्वारा यजन करनेवालेको तथा द्वापरमें श्रीहरिकी परिचर्या में तत्पर रहनेवालेको जो फल मिलता है, वही कलियुग में श्रीहरि का कीर्तन मात्र करने से प्राप्त हो जाता है।'

हरेर्नामैव नामैव नामैव मम जीवनम्।
कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा॥

 'श्रीहरिका नाम ही, नाम ही, नाम ही मेरा जीवन है। कलियुगमें इसके सिवा दूसरी कोई गति नहीं है, नहीं है, नहीं है।'

ते सभाग्या मनुष्येषु कृतार्था नृप निश्चितम्।
स्मरन्ति ये स्मारयन्ति हरेर्नाम कलौ युगे॥

 'नागेश्वर मनुष्य में वे ही सौभाग्यशाली तथा निश्चय ही कृतार्थ हैं, जो कलयुगमें हरिनामका स्वयं स्मरण करते हैं और दूसरोंको भी स्मरण कराते हैं।'

कलिकालकुसर्पस्य तीक्ष्णदंष्ट्रस्य मा भयम्।
गोविन्दनामदावेन दग्धो यास्यति भस्मताम्॥
(स्कन्दपुराण)
'तीखी दाढ़वाले कलि कालरूपी दुष्ट सर्पका भय अब दूर हो जाना चाहिये, क्योंकि गोविन्द-नामके के दावानल से दग्ध होकर वह शीघ्र ही राखका ढेर बन जायगा।’

हरिनामपरा ये च घोरे कलियुगे नराः।
त एव कृतकृत्याश्च न कलिर्बाधते हि तान्॥

घोर कलयुग में जो मनुष्य हरिनामकी शरण ले चुके हैं, वे ही कृतकृत्य हैं। कलि उन्हें बाधा नहीं देता।

हरे केशव गोविन्द वासुदेव जगन्मय।
 इतीरयन्ति ये नित्यं न हि तान् बाधते कलि:॥
(बृहन्नारदीय०)

'हरे! केशव! गोविन्द ! वासुदेव! जगन्मय!-इस प्रकार जो नित्य उच्चारण करते हैं, उन्हें कलियुग कष्ट नहीं देता।'

येऽहर्निशं जगद्धातुर्वासुदेवस्य कीर्तनम्।
कुर्वन्ति तान् नरव्याघ्र न कलिर्बाधते नरान्॥
(विष्णुधर्मोत्तर)

'नरश्रेष्ठ! जो लोग दिन-रात जगदाधार वासुदेव का कीर्तन करते हैं, उन्हें कलियुग नहीं सताता।'

ते धन्यास्ते कृतार्थाश्च तैरेव सुकृतं कृतम्।
तैराप्तं जन्मनः प्राप्यं ये कलौ कीर्तयन्ति माम्॥

 (भगवान् कहते हैं-) 'जो कलयुग में मेरा कीर्तन करते हैं, वे धन्य हैं, वे कृतार्थ हैं, उन्होंने ही पुण्य-कर्म किया है तथा उन्होंने ही जन्म और जीवन पानेयोग्य फल पाया है।'

सकृदुच्चारयन्त्येतद् दुर्लभं चाकृत आत्मनाम् ।
कलौ युगे हरेर्नाम ते कृतार्था न संशयः॥

जो कलयुग अपुण्यात्माओंके लिये दुर्लभ इस हरिनामका एक बार भी उच्चारण कर लेते हैं, वे कृतार्थ हैं-इसमें संशय नहीं है।'

नामसे सर्व पाप-नाश


पापानलस्य दीप्तस्य मा कुर्वन्तु भयं नरा: ।
गोविन्दनाममेघौघैर्नश्यते नीर बिन्दुभिः ॥
 (गरुडपुराण)

'लोग प्रज्वलित पापाग्निसे भय न करें; क्योंकि वह गोविन्द नामरूपी मेघसमूहोंके जल- बिंदुओं से नष्ट हो जाती है।'

अवशेनापि यन्नाम्नि कीर्तिते सर्वपातकैः।
पुमान् विमुच्यते सद्यः सिंहत्रस्तैर्मृगैरिव॥

'विवश होकर भी भगवान नामका कीर्तन करनेपर मनुष्य समस्त पातकोंसे उसी प्रकार मुक्त हो जाता है, जैसे सिंहसे डरे हुए भेड़िये अपने शिकारको छोड़कर भाग जाते हैं।'

या नाम कीर्तन भक्त्या विलयन मनुत्तमम्।
मैत्रेयाशेषपापानां धातूनामिव पावकः॥

 हे मैत्रेय! भक्तिपूर्वक किया गया भगवन्नाम-कीर्तन उसी प्रकार समस्त पापों को विलीन कर देनेवाला सर्वोत्तम साधन है, जैसे धातुओं की सारे मैलको जला डालनेके लिये आग।'

  - परम श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमान प्रसाद जी पोद्दार 

पुस्तक- श्रीभगवन्नाम-चिन्तन(कोड-338), गीताप्रेस, गोरखपुर 


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