|| श्रीहरिः || आज की शुभतिथि-पंचांग चैत्र कृष्ण, चतुर्थी, रविवार , वि० स० २०६९ गत ब्लॉग से आगे... भक्त आश्चर्यचकित होकर देखने लगे | अभ प्रभु नहीं ठहरे | उनका कार्य हो गया | इसलिये वे वहाँ से जल्दीसे चले |भक्तगण भी साथ हो लिये | थोड़ी-सी दूर जाकर प्रभु बैठ गए | भक्तगण दूर से धोबी का तमाशा देखने लगे | धोबी भाव बता-बता क्र नाच रहा है | प्रभु के चले जाने का उसे पता नहीं है | भग्यवान धोबी अपने ह्रदय में गौर-रूप का दर्शन कर रहा है | भक्तो ने समझा मनो एक यन्त्र है | प्रभु उसकी कल दबा कल चले आये है और वह उसी कल से हरी बोल पुकारता हुआ नाच रहा है | भक्त चुपचाप देख रहे है | थोड़ी देर बाद धोबिन घर से रोटी लायी | कुछ देर तो उसने दूरसे खड़े-खड़े पति का रंग देखा, पर कुछ भी न समझकर हसी में उड़ाने के भाव से उसने कहा ‘यह क्या हो रहा है ? यह नाचना कब से सीख लिया ?’ धोबी ने कोई उत्तर नहीं दिया |वह उसी तरह दोनों हाथो को उठाये हुए घूम-घूम कर भाव दिखाता हुआ ‘हरी बोल’ पुकारने और नाचने लगा | धोबिन ने समझा पति को होश नहीं है | उसको कुछ न कुछ हो गया है | वह डर गयी और और चिल्लाती हुई गावँ की
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