जीवन में उतारने योग्य भाईजी की अतुल संपत्ति — १.सबमें भगवान् को देखना २.भगवत्कृपा पर अटूट विश्वास ३.भगवन्नाम का अनन्य आश्रय | भगवान् में विश्वास करनेवाले सच्चे वे ही हैं,जिनका विश्वास विपत्तिकी अवस्थामें भी नहीं हिलता। जो सम्पत्तिमें भगत्कृपा मानते हैं और विपत्तिमें नहीं, वे सच्चे विश्वासी नहीं हैं। भगवान् की रुचिके सामने अपनी रुचि रखनेसे कोई लाभ नहीं होता। उनकी रुचि ही कल्याणमयी है। उनकी रुचिके लिये सदा अपनी रुचिका त्याग कर देना चाहिये। कामनाओंकी पूर्ति कामनाओंके विस्तारका हेतु होती है। सच्चा आनन्द कामनाकी पूर्तिमें नहीं कामनापर विजय प्राप्त करनेमें है। विषय-चिन्तन, विषयासक्ति, विषयकामना,विषय-भोग सभी महान् दुःख उत्पन्न करनेवाले हैं और नरकाग्निमें जलानेके हेतु हैं। भजन मन, वचन और तन—तीनोंसे ही करना चाहिये। भगवान् का चिन्तन मनका भजन है, नाम-गुण-गान वचनका भजन है और भगवद्भावसे की हुई जीवसेवा तनका भजन है। भगवान् की कृपा सभीपर है, परंतु उस कृपाके तबतक दर्शन नहीं होते, जबतक मनुष्य उसपर विश्वास नहीं करता और भगवत्कृपाके सामने लौकिक-पारलौकिक सारे भोगों और साधनोंको तुच्छ नहीं समझ लेता। तन-मनसे भजन न बन पड़े तो केवल वचनसे ही भजन करना चाहिये। भजनमें स्वयं ऐसी शक्ति है कि जिसके प्रतापसे आगे चलकर अपने-आप ही सब कुछ भजनमय हो जाता है।
ॐ कलीं श्रीराधाकृष्णाभ्यां नम:

बुधवार, मार्च 27, 2013

पदरत्नाकर पद- १३०


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

                  फाल्गुन पूर्णिमा, बुधवार, वि० स० २०६९
नाथ मैं थारो जी थारो।
चोखो, बुरो, कुटिल अरु कामी, जो कुछ हूँ सो थारो॥
बिगड्यो हूँ तो थाँरो बिगड्यो, थे ही मनै सुधारो।
सुधर्‌यो तो प्रभु सुधर्‌यो थाँरो, थाँ सूँ कदे न न्यारो॥
बुरो, बुरो, मैं भोत बुरो हूँ, आखर टाबर थाँरो।
बुरो कुहाकर मैं रह जास्यूँ, नाँव बिगड़सी थाँरो॥
थाँरो हूँ, थाँरो ही बाजूँ, रहस्यूँ थाँरो, थाँरो !!
आँगलियाँ नुँहँ परै न होवै, या तो आप बिचारो॥
मेरी बात जाय तो जा‌ओ, सोच नहीं कछु हाँरो।
मेरे बड़ो सोच यों लाग्यो बिरद लाजसी थाँरो॥
जचे जिस तराँ करो नाथ ! अब, मारो चाहै त्यारो।
जाँघ उघाड्याँ लाज मरोगा, ऊँडी बात बिचारो॥
- परम श्रद्धेय श्रीहनुमान प्रसाद जी पोद्दार , पदरत्नाकर  कोड-50


ENGLISH TRANSLESSION:

Oh Lord, I am yours and only yours.
Whether I am good or bad, cunning and lustful, whatever I am, I am yours only.
If I am spoilt, then too I am your spoilt son, you only improve me.
If I am good, then too I am your good son, I am never separate from you.
Bad, bad, I am extremely bad, but in the end I am still your son.
I will merely be called bad, nothing more, but your good name will get spoilt.
I am yours, I am only yours, I will ever be yours yours.
Fingers can’t be separated from the nails, you only think about it,
If what I say does not become true, then so be it, I do not worry at all.
I instead worry a lot that then your great glory will be put to shame.
Lord, you do whatever seems right to you, now whether you kill me or liberate me.
- Hanuman Prasad Poddar-Bhaiji , From book - Padratnakar  code N0. - 50
 



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