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अप्रैल, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आनन्द की लहरें-१५-

॥ श्रीहरिः ॥ आज की शुभतिथि-पंचांग वैशाख कृष्ण पंचमी , मंगल वार ,  वि० स० २०७०       याद रखो ......    यदि कभी किसी जीवको तुम्हारे द्वारा कुछ भी कष्ट पहुँच जाय  तो उससे क्षमा माँगो , अभिमान छोड़कर उसके सामने हाथ जोड़कर उससे दया- भिक्षा चाहो , हजार आदमियोंके सामने भी अपना अपराध स्वीकार करनेमें संकोच न करो , परिस्थिति बदल जानेपर भी अपनी बात  न बदलो , उसे सुख पहुँचाकर उसकी सेवा करके अपने प्रति उसके हृदयमें सहानुभूति और प्रेम उत्पन्न कराओ ! यह ख़याल मत करो कि कोई मेरा क्या कर सकता है ? मैं सब तरहसे बलवान् हूँ , धन , विद्या , पद आदिके कारण बड़ा हूँ ! वह कमजोर-अशक्त मेरा क्या बिगाड़ सकेगा ? ईश्वरके दरबारमें कोई छोटा-बड़ा नहीं है ! वहाँके न्यायपर तुम्हारे धन , विद्या और पदोंका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा ! कमजोर-गरीबकी दुःखभरी आह तुम्हारे अभिमानको चूर्ण करनेमें समर्थ होगी! तुम्हारे द्वारा दूसरेके अनिष्ट होनेकी छोटी-से-छोटी घटना भी तुम्हारे हृदयमें सदा शूलकी तरह चुभने चाहिये , तभी तुम्हारा हृदय शीतल होगा और तुम पापमुक्त हो सकोगे !     — श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भा

आनन्द की लहरें -१४-

॥ श्रीहरिः ॥ आज की शुभतिथि-पंचांग वैशाख कृष्ण चतुर्थी , सोम वार ,  वि० स० २०७०     याद रखो कि तुम्हें जब दूसरेके द्वारा जरा-सा भी कष्ट मिलता है , तब तुम्हें कितना दुःख होता  है , इसी प्रकार उसे भी होता है! इसलिये कभी भूलकर भी किसीके अनिष्टकी भावना ही न करो , ईश्वरसे सदा यह प्रार्थना करते रहो कि ' हे भगवन् ! मुझे ऐसी सदबुद्धि दो जिससे मैं तुम्हारी सृष्टिमें तुम्हारी किसी भी संतानका अनिष्ट करने या उसे दुःख पहुँचानेमें कारण न बनूँ ! ’ सदैव सबकी सच्ची हित-कामना करो और यथासाध्य सेवा करनेकी वृत्ति रखो! कोढ़ी , अपाहिज , दु ; खी-दरिद्रको देखकर यह समझकर कि ' यह अपने बुरे कर्मोंका फल भोग रहा है ; जैसा किया था वैसा ही पाता है '-- उसकी उपेक्षा न करो , उससे घृणा न करो और रुखा व्यवहार करके उसे कभी कष्ट न पहुँचाओ ! वह चाहे पूर्वका कितना ही पापी क्यों न हो , तुम्हारा काम उसके पाप देखनेका नहीं है , तुम्हारा कर्तव्य तो अपनी शक्तिके अनुसार उसकी भलाई करना तथा उसकी सेवा करना ही है! यही भगवान् की तुम्हारे प्रति आज्ञा है !                   यह न कर सको तो कम-से-

आनन्द की लहरें -१३-

॥ श्रीहरिः ॥ आज की शुभतिथि-पंचांग वैशाख कृष्ण तृतीया , रवि वार ,  वि० स० २०७०     किसी पर कभी अहसान न करो कि मैंने तुम्हारा उपकार किया है ! अहसान करोगे तो उसपर भारी बोझ  पड़ जायगा ! वह दु:खी होगा , आइन्दे तुम्हारी सेवा स्वीकार करनेमें उसे संकोच होगा ! उसके अहसान न माननेसे तुम्हें दुःख होगा , तुम उसे कृतघ्न समझोगे , परिणाममें तुम्हारे और उसके दोनोंके हृदयोंमें द्वेष उत्पन्न हो जायगा ! इस बातको भूल ही जाओ कि मैंने किसीकी सेवा की है !     याद रखो   :- तुम्हारे द्वारा किसी प्राणीका कभी कुछ भी अनिष्ट हो जाय या उसे दुःख पहुँच जाय तो इसके लिये बहुत ही पश्चात्ताप करो ! यह ख़याल मत करो कि उसके भाग्यमें तो दुःख बदा ही था , मैं तो निमित्तमात्र हूँ , मैं निमित्त न बनता तो उसको कर्मका फल ही कैसे मिलता , उसके भाग्य से ही ऐसा हुआ है , मेरा इसमें क्या दोष है , उसके भाग्यमें जो कुछ भी हो इससे तुम्हें मतलब नहीं !                                      तुम्हारे लिये ईश्वर और शास्त्रकी यही आज्ञा है कि  तुम किसीका अनिष्ट न करो! तुम किसीका बुरा करते हो तो अपराध करते हो और इस

आनन्द की लहरें -12-

॥ श्रीहरिः ॥ आज की शुभतिथि-पंचांग वैशाख कृष्ण द्वितीया ,  शनिवार ,  वि० स० २०७०   किसीके मुँहसे कोई बात अपने विरूद्ध सुनते ही उसे अपना विरोधी मत मान बैठो , विरोधका कारण ढूँढो और उसे मिटानेकी सच्चे हृदयसे चेष्टा करो! हो सकता है तुमसे ही कोई दोष हो जो तुम्हें अबतक न दिख पड़ा हो अथवा वह ही बिना बुरी नीयतके ही किसी परिस्थितिके प्रवाहमें बह गया हो ! ऐसी स्थितिमें शान्ति और प्रेमसे काम लेना चाहिये !   अपने हृदयको सदा टटोलते रहना ही साधकका कर्त्तव्य है , उसमें घृणा , द्वेष , हिंसा , वैर , मान-अहंकार , कामना आदि अपना डेरा न जमा लें ! बुरा कहलाना अच्छा है ; परन्तु अच्छा कहलाकर बुरा बने रहना बहुत ही बुरा है ! तुम्हारे द्वारा किसी प्राणीकी कभी कोई सेवा हो जाय तो यह अभिमान न करो कि मैंने उसका उपकार किया है ! यह निश्चय समझो कि उसको तुम्हारे द्वारा बनी हुई सेवासे जो सुख मिला है सो निश्चय ही उसके किसी शुभकर्मका फल है! तुम तो उसमें केवल निमित्त बने हो , ईश्वरका धन्यवाद करो  जो उसने तुम्हें किसीको सुख पहुँचानेमें निमित्त बनाया और उस प्राणीका उपकार मानो जो उसने तुम्हारी सेव