जीवन में उतारने योग्य भाईजी की अतुल संपत्ति — १.सबमें भगवान् को देखना २.भगवत्कृपा पर अटूट विश्वास ३.भगवन्नाम का अनन्य आश्रय | भगवान् में विश्वास करनेवाले सच्चे वे ही हैं,जिनका विश्वास विपत्तिकी अवस्थामें भी नहीं हिलता। जो सम्पत्तिमें भगत्कृपा मानते हैं और विपत्तिमें नहीं, वे सच्चे विश्वासी नहीं हैं। भगवान् की रुचिके सामने अपनी रुचि रखनेसे कोई लाभ नहीं होता। उनकी रुचि ही कल्याणमयी है। उनकी रुचिके लिये सदा अपनी रुचिका त्याग कर देना चाहिये। कामनाओंकी पूर्ति कामनाओंके विस्तारका हेतु होती है। सच्चा आनन्द कामनाकी पूर्तिमें नहीं कामनापर विजय प्राप्त करनेमें है। विषय-चिन्तन, विषयासक्ति, विषयकामना,विषय-भोग सभी महान् दुःख उत्पन्न करनेवाले हैं और नरकाग्निमें जलानेके हेतु हैं। भजन मन, वचन और तन—तीनोंसे ही करना चाहिये। भगवान् का चिन्तन मनका भजन है, नाम-गुण-गान वचनका भजन है और भगवद्भावसे की हुई जीवसेवा तनका भजन है। भगवान् की कृपा सभीपर है, परंतु उस कृपाके तबतक दर्शन नहीं होते, जबतक मनुष्य उसपर विश्वास नहीं करता और भगवत्कृपाके सामने लौकिक-पारलौकिक सारे भोगों और साधनोंको तुच्छ नहीं समझ लेता। तन-मनसे भजन न बन पड़े तो केवल वचनसे ही भजन करना चाहिये। भजनमें स्वयं ऐसी शक्ति है कि जिसके प्रतापसे आगे चलकर अपने-आप ही सब कुछ भजनमय हो जाता है।
ॐ कलीं श्रीराधाकृष्णाभ्यां नम:

सोमवार, अप्रैल 29, 2013

आनन्द की लहरें -१४-

श्रीहरिः
आज की शुभतिथि-पंचांग
वैशाख कृष्ण चतुर्थी, सोमवारवि० स० २०७०
 


याद रखो कि तुम्हें जब दूसरेके द्वारा जरा-सा भी कष्ट मिलता है, तब तुम्हें कितना दुःख होता  है, इसी प्रकार उसे भी होता है! इसलिये कभी भूलकर भी किसीके अनिष्टकी भावना ही न करो, ईश्वरसे सदा यह प्रार्थना करते रहो कि ' हे भगवन् ! मुझे ऐसी सदबुद्धि दो जिससे मैं तुम्हारी सृष्टिमें तुम्हारी किसी भी संतानका अनिष्ट करने या उसे दुःख पहुँचानेमें कारण न बनूँ !

सदैव सबकी सच्ची हित-कामना करो और यथासाध्य सेवा करनेकी वृत्ति रखो! कोढ़ी, अपाहिज, दु;खी-दरिद्रको देखकर यह समझकर कि 'यह अपने बुरे कर्मोंका फल भोग रहा है; जैसा किया था वैसा ही पाता है'-- उसकी उपेक्षा न करो, उससे घृणा न करो और रुखा व्यवहार करके उसे कभी कष्ट न पहुँचाओ ! वह चाहे पूर्वका कितना ही पापी क्यों न हो, तुम्हारा काम उसके पाप देखनेका नहीं है, तुम्हारा कर्तव्य तो अपनी शक्तिके अनुसार उसकी भलाई करना तथा उसकी सेवा करना ही है! यही भगवान् की तुम्हारे प्रति आज्ञा है !
                  यह न कर सको तो कम-से-कम इतना तो जरुर ख़याल रखो जिससे तुम्हारे द्वारा न तो किसीको कुछ भी कष्ट पहुँचे और न किसका अनिष्ट ही हो! तुम किसीसे घृणा करके उसे दुःख पहुँचाते हो तो पाप करते हो, जिसका बुरा फल तुम्हें जरुर भोगना पड़ेगा|


श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, आनन्द की लहरें पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!! 
 
 

 

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