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पदरत्नाकर

[ ८५ ] राग खमाच — तीन ताल छुड़ा दो विषयोंका अभिमान। करके कृपा , कृपामय!   हमको दो यह शुभ वरदान॥ धन-जन-पद-अधिकार-देह सुख-कीरति-पूजन-मान । उच्च जाति-कुल , सबको समझें बिजली-चमक समान॥ सबको आदर दें , सब ही का करें सदा सम्मान। दुखियोंमें , बस , तुम्हें देखकर , करें उन्हें सुख-दान॥ देखें नहीं उच्च महलोंको , नहिं देखें धनवान। देखें राह पड़े दुखियोंको , अपने ही सम जान॥ आश्रयहीन , अनाथ , अपाहिज , रुग्ण , दीन , अज्ञान। भूखों-नंगोंके हित कर दें जीवनका बलिदान॥ तप्त आँसुओंको नित पोंछें , निज सुखका कर दान। कभी न इसका बदला चाहें , करें न कुछ अहसान॥ उनकी चीज उन्हींको दे दें , बनें न बेईमान। इसे न समझें दान कभी भी , करें न गौरव-मान॥ सबमें तुम , सब ही तुम , सब कुछके स्वामी भगवान। नित्य करें निश्चय अनुभव यह , ‘ मैं-मेरा ’ कर दान॥ -नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार  Download Android App -    पदरत्नाकर

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[ ८३ ] राग ईमन — तीन ताल प्रभु!   तुम अपनौ बिरद सँभारौ। हौं अति पतित , कुकर्मनिरत , मुख मधु , मन कौ बहु कारौ॥ तृस्ना-बिकल , कृपन , अति पीड़ित , काम-ताप सौं जारौ। तदपि न छुटत विषय-सुख-आसा , करि प्रयत्न हौं हारौ॥ अब तौ निपट निरासा छाई , रह्यौ न आन सहारौ। एक भरोसौ तव करुना कौ , मारौ चाहें तारौ॥ -नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार  Download Android App -    पदरत्नाकर

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[ ८२ ] राग विहाग — तीन ताल हमें प्रभु!   दो ऐसा वरदान। तन-मन-धन अर्पण कर सारा , करें सदा गुण-गान॥ कभी न तुमसे कुछ भी चाहें , सुख-सम्पति-सम्मान। अतुल भोग परलोक-लोकके खींच न पायें ध्यान॥ हानि-लाभ , निन्दा-स्तुति सम हों , मान और अपमान। सुख-दुख विजय-पराजय सम हों , बन्धन-मोक्ष समान॥ निरखें सदा माधुरी मूरति , निरुपम रसकी खान। चरण-कमल-मकरन्द-सुधाका करें प्रेमयुत पान॥ -नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार  Download Android App -    पदरत्नाकर

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[ ८१ ] राग आसावरी — तीन ताल जला दो उर मेरे विरहानल। प्रियतम!  बिना तुम्हारे , बीते दुखमय युग-सम मेरा पल-पल॥ भोगासक्ति-कामना-ममता जग-ज्वालाएँ सब जायें जल। मिट जाये सब दु:खयोनि आद्यन्तवन्त भोगोंका अरि-दल॥ जाग उठे दैवी गुण , हो वैराग्य-राग-रञ्जित अन्तस्तल। मिलन तुम्हारा हो , मिल जाये मानव-जीवनका यथार्थ फल॥ -नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार  Download Android App -    पदरत्नाकर

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[ ८०] राग काफी — तीन ताल हौं हरिदास-दास कौ दास। परम अनुग्रह करि पूरी प्रभु ने मो मन की आस॥ तन-मन , धन-जन , कछु नहिं मो पै , हौं चरननि कौ चेरौ। बड़भागी को मो सम , पायौ पद-कमलनि महँ डेरौ॥ नहिं कछु साधन कौ बल , हौं तौ दास-दास-पद-धूल। यहै एक अवलंब , परम बल , यहै सजीवन मूल॥ श्रीहरि के प्रिय दास , जानि मोहि निज दासनि कौ दास। सब अपराध छमा करि राख्यौ निज चरननि के पास॥ -नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार  Download Android App -    पदरत्नाकर

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[ ७९ ] राग जंगला — ताल कहरवा हे मेरे!  तुम , प्राण-प्राण!  तुम , जीवनके जीवन-आधान। ‘ मैं ’ से रहित बना दो मुझको , हर लो अहंकार-अभिमान॥ कर दो मुझे अकिंचन पूरा , हर लो सभी लोक-परलोक। भर जाओ उर अमित ज्योति तुम!  हर लो मिथ्या तम-आलोक॥ नटवर!  नाचो मनमाने तुम , मुझे नचाओ मन-अनुसार। कण-कणपर हो प्रकट तुम्हारा क्रियाशील अनुपद अधिकार॥ कठपुतलीकी भाँति सर्वथा सम्मत , नीरव , वाक्य-विहीन। नाचें सभी अङ्ग-अवयव , हो तव रुचि रम्य रज्जु-आधीन॥ -नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार  Download Android App -    पदरत्नाकर

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[ ७७ ] राग भूपाली — तीन ताल मुझे प्रभु!  दो वह सुन्दर स्थान। जहाँ गा सकूँ सरस तुम्हारा मैं अचिन्त यश-गान॥ जहाँ न हो मानापमानका तनिक भी कहीं भान। जहाँ न हो स्तुति-निन्दा , प्रिय-अप्रियका तनिक विधान जहाँ न हो बँटवारेको कुछ धन-धरणी-सामान। जहाँ न हो नकली पर्दा , जो झूठ दिखावे शान॥ जहाँ सत्य नित रहे प्रकाशित , बिना बाहरी वेष। जहाँ प्रेमका शुद्ध सुधा-रस बहता रहे अशेष॥ जहाँ सरल शुभकी धारामें सब बह जाय भदेस। जहाँ भरा हो भगवदीय भावोंसे सारा देश॥ -नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार  Download Android App -    पदरत्नाकर

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[ ७६ ] राग आसावरी — तीन ताल करौ , प्रभु!   ऐसी कृपा महान। छाड़ि कपट-छल भजौं निरंतर सरल हृदै तजि मान॥ सत्य , बिरति , बिग्यान , चरन-रति देहु दया करि दान। जीवन अर्पित होय जथारथ , मिटै मोह-अग्यान ममता रहै सदा प्रभु-पद महँ , रहै दास-अभिमान। निज-पर , लाभ-हानि — सब महँ रह चित की बृत्ति समान॥ सब महँ लखौं निरंतर तुम कौं , करौं सदा सनमान। जीवमात्र कौ करौं न कबहूँ अहित और अपमान॥ राग-द्वेष-रहित इंद्रिय-मन सेवा करैं अमान। परम ‘ अकिंचन ’ सदा रहौं मैं तुमहिं परम धन जान॥ -नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार  Download Android App -    पदरत्नाकर

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[ ७५ ] राग बहार — तीन ताल अब मोहि एक भरोसौ तेरौ। भक्ति-भाव सौं बिरत , कलुष-रत , मोहाबृत , बिषयन कौ चेरौ॥ काम-लोभ-मद-मोह बसत निसिबासर कियें हिये महँ डेरौ। सिरपर मीच , नीच नहिं चितवत , रहत सदा रोगनि सौं घेरौ॥ परमारथ की बात कहत नित , भोगन सौं अनुराग घनेरौ। बार-बार अनुभवत-नहीं कोउ तो-सौ हितू , न तो-सौ नेरौ॥ तदपि बिसारि तोहि , हौं पाँवर सुमिरौं कामज सुखहि अनेरौ। अब तौ , बस , तू ही अवलंबन , तो बिनु और न कोऊ मेरौ॥ निज पन-बिरद बिचारि , दयामय!   कृपा अहैतुक सौं नित प्रेरौ। तू ही मोहि उबार बिषम भव-सागर सौं करि छोह बडेरौ॥ -नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार  Download Android App -    पदरत्नाकर

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[ ७४ ] राग भूपाली — तीन ताल कैसैं बिनय सुनावौं , स्वामी!  छिपी न कछु तुम सौं अंतर की , सब के अंतरजामी॥ सब बिधि हीन , मलिन-मति मोपै परम अनुग्रह कीन्हौ। निज स्वभावबस मान , बिपुल जस , धन-बैभव बहु दीन्हौ॥ सब लोकनि में साधु कहायौ , भक्तराज पद पायौ। रह्यौ बासना-बिबस निरंतर नित बिषयन प्रति धायौ॥ कनक-कामिनी-रस-बस निसि-दिन सहज कुमारगगामी। भूल्यौ परम अनुग्रह प्रभु कौ ऐसौ नौंन-हरामी॥ हौं अति कुटिल , कृतघ्नी , कामी , नरक-कीट , अघ-भार। निज दिसि देखि , बिरुद लखि , मोहि उबारहु परम उदार॥ -नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार  Download Android App -    पदरत्नाकर

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[ ७३ ] राग पीलू — तीन ताल हमें ऐसा बल दो भगवान! जिससे कभी समीप न आयें पाप-ताप बलवान॥ पर-सुख-हित-निमित्त निज सुखका हो स्वाभाविक त्याग। बढ़ते रहें पवित्र भाव , हो प्रभु-पदमें अनुराग॥ भोगोंमें न रहे रञ्चकभर मेरापन अभिमान। बनी रहे स्मृति सदा तुम्हारी पावन मधुर महान॥ लीला-गुण , शुचि नाम तुम्हारा हों जीवन-आधार। रोम-रोमसे निकले सदा तुम्हारी जय-जयकार॥ -नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार  Download Android App -    पदरत्नाकर