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राग ईमन—तीन ताल
प्रभु! तुम
अपनौ बिरद सँभारौ।
हौं अति पतित, कुकर्मनिरत, मुख मधु, मन कौ
बहु कारौ॥
तृस्ना-बिकल, कृपन, अति पीड़ित, काम-ताप सौं
जारौ।
तदपि न छुटत विषय-सुख-आसा, करि प्रयत्न हौं हारौ॥
अब तौ निपट निरासा छाई, रह्यौ न आन सहारौ।
एक भरोसौ तव करुना कौ, मारौ चाहें तारौ॥
-नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार
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